आजादी के इतने वर्षों बाद भी अब तक भारत के गांवों में मूलभूत सुविधाएं शहरों की अपेक्षा बहुत ही कम है। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति तो वें जैसे-तैसे कर ही लेते है लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य अब भी कोसो दूर है। शासन द्वारा इन दूरियों को कम करने की लगातार कोशिश हो रही है। शहरों में शिक्षा और स्वास्थ्य में तेजी से आये बदलाव का एक बड़ा कारण इसमें निजी भागीदारी को माना जा रहा है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च तकनीकी शिक्षा तक में भी निजी शिक्षण संस्थानों ने क्रांतिकारी बदलाव किये है। एक तरह से देखा जाए तो शासकीय से बेहतर निजी स्कूलों की शिक्षा को माना जाता है, पालक अपने बच्चों को सरकारी के बजाए प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। इसी तरह स्वास्थ्य में भी निजी अस्पतालों ने बड़े शहरों में बेहतर काम किया है। आधुनिक तकनीक के साथ सर्वसुविधायुक्त निजी अस्पताल अब अमीरों के साथ गरीबों को भी रास आ रहा है। हालांकि निजीकरण के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य काफी महंगे हुये है लेकिन लोग बेहतरी के लिये पैसा बहाने से नहीं डरते। और फिर गरीबों के लिए इन दोनों संस्थानों में विभिन्न शासकीय योजनाओं के तहत लाभ भी मिलता है।
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में ग्रामीणों को बेहतर सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से गांवों में प्राइवेट अस्पताल बनाने में सहयोग करने की कार्य योजना को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा यह घोषणा की गई कि नवा रायपुर में 25 एकड़ की भूमि को निजी अस्पतालों के लिये आरक्षित रखा गया है। वहां सर्वसुविधायुक्त ऐसे अस्पताल बनेंगे जो बड़े महानगरों में होते है, छत्तीसगढ़ की जनता को किसी भी बीमारी के उपचार के लिए राज्य से बाहर जाने की जरूरत नहीं होगी। और यदि बाहर ले जाने की जरूरत महसूस हुई तो अस्पताल से ही सीधे शिप्ट करने की व्यवस्था बनी रहेंगी। ग्रामीण अंचलों में भी स्वास्थ्य की सुविधा को बेहतर करने के लिये मुख्यमंत्री ने कहा है कि जो चिकित्सक गांव में निजी अस्पताल बनाना चाहते हैं उन्हे अनुदान भी मिलेगा। चिकित्सा में निजीकरण तो था ही लेकिन सरकार द्वारा मदद मिलने से निश्चित ही और भी व्यापक रूप से छोटे कस्बों में भी स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा मिल सकेंगे।
गत दो वर्ष से जिस प्रकार वैश्विक महामारी कोरोना ने उपचार के अभाव में लोगों की जाने ली है, स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण के फैसले को अच्छी और दूरगामी सोच ही कहा जा सकता है। दूसरी तरफ देखा जाए तो निजी अस्पतालों में सुविधाओं के साथ उपचार महंगा भी होता है। कई बार आम जनता पैसों के आभाव में ईलाज नहीं करा पाते। कुछ तो अपनी जमीन जायदाद तक बेच कर उपचार करवाते हैं। जान है तो जहान है के जुमले पर, लोग पैसे होने से पहला विकल्प निजी अस्पताल ही चुनते हैं। शहरों में न जाने क्यों लोग सरकारी अस्पतालों में सुविधा होने के बावजूद प्राइवेट अस्पतालों में जाते है, वहीं दूसरी तरफ देखे तो छत्तीसगढ़ में कई ऐसे ग्रामीण अंचल है जहां स्वास्थ्य सुविधा ही नहीं है। सुदूर इलाकों में तो आज भी पारंपरिक पद्धति द्वारा उपचार किया जाता है, यहां तक की झाड़-फूंक और तंत्र-मंत्र का भी सहारा लेते है अब यदि प्राइवेट अस्पतालों को अनुदान देने की सरकार की नीति पर अस्पताल ग्रामीण इलाकों में बनने लगे तो निश्चित ही लोगों को इसका लाभ मिलेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें