कहानीकार माधवराव सप्रे जी का जन्म दमोह जिले के पथरिया ग्राम में 19 जून 1871 को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा बिलासपुर से ग्रहण करने के बाद रायपुर से मैट्रिक उत्तीर्ण किये। सप्रे जी की पाठ्यक्रम में शामिल कहानी से ज्ञातव्य है कि 1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली थी। लेकिन सप्रे जी ने अँग्रेज़ों की नौकरी नहीं की। वें सन 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्रिका निकाले, जो कि सिर्फ़ तीन साल ही चल पायी। तदोपरांत सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को यहाँ हिंदी केसरी के रूप में छापना प्रारंभ किया तथा साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई। हिन्दी कहानी के उम्दा शिल्पकार, पत्रकारिता के युग पुरूष सप्रे जी 23 अप्रैल 1926 को दुनिया छोड़ गये।
छत्तीसगढ़ के पाठ्य पुस्तक में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को सभी ने पढ़ा होगा। कहानी बहुत ही मार्मिक है, एक जमीदार और विधवा औरत के द्वारा अपनी पोती के लिये चूल्हे की मिट्टी ले जाने की लघु प्रसंग ही पूरी कहानी का सार है। जिसे पढ़ने पर कई बार आंखे नम हो जाती है। मन करता है जमीदार को जी भर कोसे। विधवा भी आखिर क्या कर सकती है जमींदार का। पोती हो मनाने के लिये ली जाने वाली टोकरी भर मिट्टी को न उठा पाने के दंभ के बाद जमींदार का हृदय परिवर्तन होना कहानी की सकारात्मकता को दर्शाता है जो कही न कही समाज में सीख देने की कोशिश कर रहा है। इसमें जमीदार और बुढि़या के अलावा उनकी पोती की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इस कहानी को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है।
कहानी (एक टोकरी भर मिट्टी)
किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था।
पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी।
उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्न निष्फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, ''महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।'' जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, ''जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत-कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी।
अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!'' श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दु:ख को किसी तरह सँभालकर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी, ''महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।'' जमींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके मन में कुछ दया आ गई।
किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने आगे बढ़े। ज्योंही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्योंही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे, ''नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।''
यह सुनकर विधवा ने कहा, ''महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी-भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़़ी है। उसका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।"
- एक टोकरी भर मिट्टी किसकी कहानी है?
- एक टोकरी भर मिट्टी कहानी के लेखक का नाम क्या है?
- एक टोकरी भर मिट्टी कहानी को आप क्या शीर्षक देना चाहेंगे और क्यों लिखें?
- विधवा झोपड़ी में से एक टोकरी मिट्टी क्यों ले जाना चाहती थी?
- एक टोकरी भर मिट्टी कहानी में कितने प्रमुख पात्र है?
- विधवा एक टोकरी मिट्टी का क्या करना चाहती थी?
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