संगम तट में लोक खेलों का अद्भुत मेला

यात्रा संस्मरण :

छत्तीसगढ़ की प्रयाग नगरी कही जाने वाली राजिम में सदियों से माघी पुन्नी से लेकर महाशिवरात्रि तक पाक्षिक विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में जहां-जहां महादेव का वास है वहां पूर्णिमा के पावन अवसर पर मेला लगता ही है किन्तु राजिम के त्रिवेणी संगम पर बसे कुलेश्वर महादेव के मेले का कई ऐतिहासिक और पौराणिक किवदंतियां होने के कारण विशेष महत्व है। विदित हो कि पिछले कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ शासन का धर्मस्व, संस्कृति और पर्यटन विभाग द्वारा विशेष रूचि लेने से यह मेला और भी भव्य हो गया है। 


प्रतिवर्ष राजिम में देव दर्शन के साथ ही विशाल संत समागम, शाही स्नान, मेला, मीना बाजार और मनोरंजक आयोजन में दर्शनार्थियों का रेला लगता है। किन्तु इस वर्ष का मेला नई सरकार जिसे छत्तीसगढ़िया सरकार भी कहा जाता है के बूते होने के कारण बहुत कुछ नवाचार के साथ आयोजित हुआ। संगम तट पर मेला घूमते लोगों को अपनी पारंपरिक लोक खेलों से रूबरू कराता हुआ एक विशाल मंडप का निर्माण कराया गया था। जिसमें धर्म की नगरी में संस्कृति और लोक परंपरा को सहेजता हुआ छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोक खेलों का आयोजन, प्रदर्शन और प्रतियोगिता तत्कालीन संस्कृति व पर्यटन मंत्री एवं विभाग के संचालक के दिशा निर्देश पर लोक खेल उन्नायक चंद्रशेखर चकोर जी के मार्गदर्शन में हो रहा था। 


पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद पहली बार इतने व्यापक स्तर पर गोंटा, पच्चीस गोटिया, बग्गा, बिल्लस, फुगड़ी, भोटकुल, तुवे लंगरची, अट्ठारह गोटिया, खो-खो, कबड्डी, भारत, बांटी, भौरा और गेड़ी जैसे छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकखेलों का आयोजन हो रहा था। यह आयोजन छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल और संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू जी के विशेष सानिध्य में सफलता पूर्वक आयोजित हुआ। कई बड़े आयोजनों में अकसर देखा गया है कि मुख्यमंत्री जी सहजता से बांटी, भौरा और गेड़ी में आत्मियता के साथ रम जाते है। जिस प्रदेश में ऐसे मुखिया हो वहां की लोक संस्कृति और परंपरा कभी विलुप्त नहीं हो सकती है। 


संगम तट यानी जहां राजिम मेला भरता है, में लगे पारंपरिक खेल के पंडाल में पहुंचते ही लोग अपने बचपन में लौट आते थे। पंडाल में आने वाले लोग पहले तो कौतूहल से देखते और मन ही मन आनंदित हो उठते। दूसरों को खेलते देखकर अपने आप को रोक नहीं पाते थे। क्या बच्चे, क्या युवा और क्या बुजुर्ग यहां तक की औरतें भी पंडाल में रूक कर छत्तीसगढ़ी खेल में रम जाते थे। यकीन माने तो खेलों के प्रति ये लगाव है जो दूर-दूर से पहुंचे लोग अंजाने साथी के साथ घंटों खेलों का लुप्त उठाते थे। मीलों दूर ले मेला देखने आए जनमानस राज्य सरकार के इस नवाचार का सराहना करते नहीं थकते थे।


इस आयोजन में दूर दराज के अलावा आसपास गांव के लोग भी पहुंचते थे, वे मजे से रोज अनेको खेल खेलते। कभी हार तो कभी जीत लेकिन खुशी दोनो में ही बराबर आता था। लोकखेल के आयोजन में कभी स्कूली बच्चों के साथ अध्यापकगण तो कभी बड़े अफसर के साथ छोटे कर्मचारी निःसंकोच खेलते थे। राजिम जैसे पौराणिक नगरी जहां जीवात्मा मोक्ष पाता हो वहां जब खेल से सुकून मिले तो लोग खिलाने वालों को भी साधूवाद देकर जाते थे। लोकखेलों को खिलाने वाले सिद्धहस्त खिलाड़ियों की टीम में प्रमुख रूप से लोक खेल उन्नायक चंद्रशेखर चकोर के साथ उनके सहयोगी शिव चंद्राकर, घनश्याम वर्मा, यतीश बंछोर, परमेश्वर कोसे, भेवसिंह दीवान, जितेन्द्र साहू, मिथलेश निषाद आदि लोकखेलों की प्रचलित नियमावली से अवगत कराते हुये खेल खिलाते थे। त्रिवेणी संगम से शुरू हुआ, लोक खेलों के उन्नयन का छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा आयोजित यह राज्य स्तरीय वृहद आयोजन का सिलसिला अविरल बहती रहे ऐसी हम सब की आपेक्षा है।

जयंत साहू, 
रायपुर, छत्तीसगढ़ - 9826753304

भारतीय सिनेमा के संदर्भ में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का विकासक्रम 2019


कहते है कि भारत में सिनेमा का आरंभ 1913 में दादासाहेब फालके द्वारा बनाई गई राजा हरिशचंद्र से हुआ था। मूक, श्वेतश्याम से बोलती और फिर रंगीन सिनेमा का दौर आया। साथ ही भारत में अन्य क्षेत्रीय सिनेमा का विकास भी होता गया। 1917 में बांग्ला सिनेमा, 1919 में दक्षिण भारतीय सिनेमा के साथ ही धीरे-धीरे असमी, उड़िया, पंजाबी, मराठी सहित कई अन्य भाषाओं में क्षेत्रीय फिल्में बनने लगी।


हालांकि अविभाजित छत्तीसगढ़ में शुरूआती दौर में छत्तीसगढ़ी सिनेमा तो नहीं था लेकिन फिल्म के दिवाने बहुत थे। जिसमें से एक बड़ा नाम था मनु नायक, जिन्होंने 1965 में पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेश' बनाकर इतिहास रचा। 6 साल बाद दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म 1971 में 'घर द्वार' विजय कुमार पांडेय द्वारा बनाई थी। 


लंबे अंतराल के बाद फिर छत्तीसगढ़ी सिनेमा का नया दौर आया सतीश जैन की फिल्म मोर छइहा भुंइया से जो कि 2000 में रिलीज हुई। तब से अब तक सैकड़ों छत्तीसगढ़ी फीचर फिल्म बन चुका है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा के विकास के बाद आइये जानते कि वर्ष 2019 में कितनी छत्तीसगढ़ी फिल्म प्रदर्शित हुई। उसके निर्माता, निर्देशक और कलाकार कौन-कौन है? 

फिल्म का नाम - नाग अउ अर्जुन
निर्माता - कमलनारायण सोनकर
निर्देशक - पुरूराज साहू
कलाकार - चंद्रशेखर चकोर, तान्या तिवारी
रिलीज - 4 जनवरी 2019

फिल्म का नाम - दहाड़ 
निर्माता - किस कुर्रे
निर्देशक - एजाज वारसी
कलाकार - मनमोहन सिंह ठाकुर, रवि साहू, शेखर चौहान
रिलीज - 8 फरवरी 2019

फिल्म का नाम - बिन बिहाव गवना
निर्माता - श्रीमती काजुरी दास बंजारे
निर्देशक - श्रीमती काजुरी दास बंजारे
कलाकार - अंजना दास, ब्रिजेश कमल, राम यादव
रिलीज - 19 अप्रेल 2019

फिल्म का नाम - महूं कुंवारा तहूं कुंवारी 
निर्माता - रॉकी दासवानी
निर्देशक - मनोज वर्मा
कलाकार - मन कुरैशी, एलसा घोष, आकाश सोनी, महिरा खान
रिलीज - 26 अप्रेल 2019

फिल्म का नाम - हंस झन पगली फस जबे
निर्माता - छोटेलाल साहू
निर्देशक - सतीश जैन
कलाकार - मन कुरैशी, अनिकृति चौहान
रिलीज - 14 जून 2019

फिल्म का नाम - मंदराजी
निर्माता - किशोर सार्वा
निर्देशक - विवेक सार्वा
कलाकार - करन खान, ज्योति पटेल, संजय बत्रा
रिलीज - 28 जून 2019 

फिल्म का नाम - आई लव यू टू
निर्माता - लखी सुंदरानी
निर्देशक - उत्तम तिवारी
कलाकार - मन कुरैशी, मुस्कान साहू
रिलीज - 9 अगस्त 2019 

फिल्म का नाम - रंगोबती
निर्माता - अशोक तिवारी
निर्देशक - पुष्पेन्द्र सिंह
कलाकार - अनुज शर्मा, लेजली त्रिपाठी
रिलीज - 13 सितंबर 2019 

फिल्म का नाम - सउत सउत के झगरा
निर्माता - तिलक राजा साहू
निर्देशक - तिलक राजा साहू
कलाकार - सेवकराम यादव, संजू साहू, जागेश्वरी मेश्राम
रिलीज - 20 सितंबर 2019 

फिल्म का नाम - सुपर हीरो भइसा
निर्माता - पवन गांधी
निर्देशक -कैलाश जानवावाला
कलाकार - पवन गांधी, प्रीति माहेश्वरी
रिलीज - 11 अक्टूबर 2019 

फिल्म का नाम - राजा भइया एक आवारा
निर्माता - इरफान खान
निर्देशक - इरफान खान
कलाकार - अनुज शर्मा, तान्या तिवारी
रिलीज - 28 अक्टूबर 2019  

फिल्म का नाम - लव दिवाना
निर्माता - मोहित साहू
निर्देशक - प्रवीर दास
कलाकार - दिलेश साहू, माया साहू, प्रगति राव
रिलीज - 8 नवंबर 2019  

फिल्म का नाम - सॉरी लब यू जान
निर्माता - जेठू साहू
निर्देशक - सलीम खान
कलाकार - अनुज शर्मा, एलसा घोष
रिलीज - 15 नवंबर 2019  

फिल्म का नाम - लोरिक चंदा
निर्माता - प्रेम चंद्राकर
निर्देशक - प्रेम चंद्राकर
कलाकार - गुलशन साहू, कुंती मढ़रिया
रिलीज - 29 नवंबर 2019  

फिल्म का नाम - असली कलाकार
निर्माता - अखिलेश मिश्रा
निर्देशक - नीरज श्रीवास्तव
कलाकार - भुनेश साहू, आस्था दयाल
रिलीज - 13 दिसंबर 2019  

कोणार्क सूर्य मंदिर का अतीत और आज : यात्रा संस्मरण

कोणार्क सूर्य मंदिर का अग्रभाग

महाप्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी जी की पावन धरा ओडिशा राज्य का पुरी शहर अपनी कई ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के लिए विश्व विख्यात है। महानदी और महासागर से लिपटा ओडिशा राज्य में प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, चंद्रभागा समुद्रतट, लिंगराज मंदिर, धौली बौद्ध मंदिर और उदयगिरि-खंडगिरि की प्राचीन गुफाएं आदि स्थान प्रसिद्ध हैं। हालांकि पर्यटन की दृष्टि से ओडिशा राज्य कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण उतना विकसीत नहीं हो पाया जितना होना था, फिर भी जो कुछ बचा है किसी अजूबे से कम नहीं। ओडिशा पर्यटन से यूनेस्को विश्व विरासत स्थल की सूची में शुमार कोणार्क का सूर्य मंदिर तो अपने आप में नायाब है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का पश्चभाग

कोणार्क ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से 65 किलोमीटर तथा पुरी से उत्तर-पूर्व दिशा में 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंद्रभागा समुद्रतट से महज 3 किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क का यह ऐतिहासिक धरोहर सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर के शिखर से उगते और ढलते हुये सूर्यदेव का दर्शन होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर का नजारा बेहद ही खूबसूरत होता है। सूरज की लालिमा से पूरा मंदिर परिसर लाल-नारंगी रंगमय दिखाई देता है। इस अद्भुत नजारें को देखने के लिये देश-विदेश से हजारों सैलानी प्रतिदिन कोणार्क पहुंचते हैं। कई ऐतिहासिक और धार्मिक गूढ़ रहस्यों को अपने गर्भ में समेटे, कोणार्क सूर्य मंदिर की अनुपम नयनाभिराम दृश्य देखकर सैलानी एक पल के लिये मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। और दूसरे ही पल मन में उमड़ने लगते हैं, सैकड़ों सवाल। इस अबूझ स्थापत्य कला को लेकर कब, कैसे, क्यों और किसने जैसे सवालों का जवाब, यत्र-तत्र बिखरे अवशेष स्वयं ही अपनी कहानी बयां करता है। 

कोणार्क सूर्य मंदिर का प्रस्तर

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव ने 1250 ईस्वी में करवाया था। कई इतिहासकारों का मत यह भी है कि कोणार्क मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ईस्वी के बीच हुआ था। इसे यूनेस्को द्वारा सन् 1984 में 'विश्व धरोहर स्थल' घोषित किया गया है। तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सात में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ आरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के आठों पहर को दर्शाते हैं। स्थानीय लोग भगवान सूर्य को 'बिरंचि नारायण' भी कहते थे।

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। मुख्य मन्दिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप अब ढह चुके हैं। इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं: बाल्यावस्था- उदित सूर्य, युवावस्था- मध्याह्न सूर्य, प्रौढ़ावस्था- अपराह्न सूर्य। इसके प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। कहा जाता है ये वही स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं।

कोणार्क सूर्य मंदिर का अशोक चक्र

मंदिर का एक-एक कोना अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवान, देवता, गंधर्व, मानव, वाद्य, प्रेमी युगल, दरबार की छवियां, शिकार एवं युद्ध आदि के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच-बीच में पशु-पक्षियों और पौराणिक जीवों के अलावा महीन और पेचीदा बेल-बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्ट गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग ही दिखाई देती है। अब आंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुके इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग लगा हुआ है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला
टीप- उपरोक्त फोटोग्राफ ब्लॉगर द्वारा यात्रा के दौरान मोबाइल से खींची गई है। लेख का आधार ओडिशा की जनश्रुति है जिसमें तथ्यहिन ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक शब्दावली भी हो सकती है। जय जगन्नाथ...

- ब्लॉगर 
जयंत साहू, रायपुर छत्तीसगढ़









कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़े बारह आसान सवाल और उनके जवाब


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ईस्वी के बीच हुआ था।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर निर्माण गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव ने करवाया था।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। इस मंदिर में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का नजारा अद्भुत होता है। मंदिर के निर्माण में कई रहस्यमयी कथा किवदंतियों के साथ इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में बारह पहिए बनाये गये है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में सात घोड़े रथ खींचते बताये गए हैं।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में 1984 में शामिल किया गया।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण कलिंग शैली में हुआ है।


उत्तर- कोणार्क का सूर्य मंदिर का बारह चक्र माह को तथा आठ आरा आठों पहर को दर्शाता है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। 


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर तीन मंडपों से बना हुआ है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में सूर्य की तीन प्रतिमाएं है: बाल्यावस्था- उदित सूर्य, युवावस्था- मध्याह्न सूर्य, प्रौढ़ावस्था- अपराह्न सूर्य।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर पर्यटक सड़क, रेल व हवाई मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। यह ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से 65 किमी तथा जगन्नाथ पुरी शहर से 35 किमी की दूरी पर स्थित है। देश से बाहर के पर्यटकों के लिये भुबनेश्वर से अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवा भी उपलब्ध है। स्थानीय पर्यटक रेल मार्ग से पुरी पहुंचकर बस व टेक्सी से कोणार्क पहुंच सकते हैं।

छॉलीवुड के लिये यादगार रहा 2020 का फरवरी, 6 छत्तीसगढ़ी फिल्म एक साथ चली

छत्तीसगढ़ी फिल्म पर जयंत साहू का विशेष लेख

फीचर डेस्क रायपुर। छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग केवल नाम का है, अधिकांश फिल्म अपनी लागत तक नहीं निकाल पाती है। फिर भी लोग जोखिम उठाने का जश्बा रखते है ये बहुत बड़ी बात है। फिल्म निर्माण के गति को देखा जाए जो अब प्रत्येक माह एक-दो फिल्म बन रही है और प्रदर्शित भी हो रही है। आम दर्शकों, कलाकारों और तमाम निर्देशकों के साथ फिल्म लाइन से जुड़े सभी लोगों के लिये वर्ष 2020 का फरवरी माह यादगार बीता। छत्तीसगढ़ी सिनेमा के इतिहास में फरवरी का महीना स्वर्णीम अक्षरों में दर्ज रहेगा क्योकि इस माह एक दो नहीं बल्कि चार फिल्म सिनेमाघरों में धमाल मचा रहा है।
2020 के फरवरी में ‘जोहार छत्तीसगढ़, दईहान, आजा नदिया के पार, तै मोर लव स्टोरी, बेनाम बादशाह, तोर मोर यारी’ जैसे कुल 6 फिल्म माह के अंत तक सिनेमाघरों में सफलता पूर्वक चल रही है। हालांकि जोहार छत्तीसगढ़ 31 जनवरी को प्रदर्शित हुई जिसे प्रीमियर शो माने तो उनकी भी ओपनिंग फरवरी ही की दर्ज होगी। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी एक ही महीने में 5 छत्तीसगढ़ी फिल्म रिलीज हुआ हो।
ये पांचो फिल्म कई मायने में एक दूसरे से काफी अलग है इसलिये दर्शको ने सभी का आनंद मजे से लिया। जोहार छत्तीसगढ़ में देवेंद्र जांगड़े, शिखा चितांबरे, राज साहू, सोनाली सहारे, अनिल शर्मा, पुष्पेन्द्र सिंह, निशांत उपाध्याय, क्रांति दीक्षित, हेमलाल कौशल, विक्रम राज, सलिम अंसारी, उपासना वैष्णव आदि कलाकारों ने शानदार अभिनय किया। यह फिल्म छत्तीसगढ़ के मूल निवासी लोगों के अधिकार और बाहरी व्यक्तियों के राजनीतिक हस्तक्षेप को प्रमुखता से जनता के बीच रखा था। देवेंद्र जांगड़े, और राज साहू की इस फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया।
7 फरवरी को आई दईहान जो कि छत्तीसगढ़ की एक महान सांस्कृतिक फिल्म थी। इस फिल्म में गांव के चरवाहों की प्रेम कहानी दिखाई गई थी। फिल्म की कहानी के साथ ही संवाद और गीत-संगीत भी काफी लोकप्रिय हुआ। दर्हहान में संदीप पाटिल, जैकी भावसार, जागेश्वरी मेश्राम, घनश्याम पटेल, नवीन देशमुख, अंजलि चौहान, रजनीश झांझी, कुलेश्वर ताम्रकार, अमरसिंह लहरे, येमन साहू, पप्पू चंद्राकर और प्रमोद विश्वकर्मा आदि कलाकार अहम किरदार में थे। 7 फरवरी को ही एक और छत्तीसगढ़ी फिल्म रिलीज हुई आजा नदिया के पार। ज्ञानेश तिवारी की यह फिल्म एक लव स्टोरी थी जिसमें अशरफ अली और आस्था दयाल के साथ दूजे निषाद, विनोद, सरला सेन, मंदिरा नायक, विनायक अग्रवाल आदि ने शानदार अभिनय किया। 
फरवरी के दूसरे शुक्रवार यानी 14 फरवरी को भी दो फिल्में आई एक तै मोर लव स्टोरी और दूसरी बेनाम बादशाह। सतीश साव और अनिकृति की बहुप्रतिक्षित फिल्म तै मोर लव स्टोरी तो बहुत दिनों से कंप्लिट थी लेकिन लव स्टोरी होने के कारण निर्माता अजय वर्मा और निर्देशक दानेश साहू अच्छी और यादगार दिन की प्रतिक्षा में थे। चूकि 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाया जाता है तो इससे बढ़िया दिन एक प्रेम कहानी को रिलीज करने का हो ही नहीं सकता था। सतीश साव, अनिकृति चौहान, संजय साहू, माया साहू, रजनीश झाँझी, दूजे निषाद, विनीता मिश्रा, सनिधी विश्वनाथ राव, रिया साहू, सागर सोनी, सौरभ गोस्वामी, राज सोनी, लोकेश साहू, किशन साहू आदि तै मोर लव स्टोरी में अहम किरदार में थे। 
इस तारीख को एक और मूवी कुछ सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई जो था बेनाम बादशाह। बेनाम बादशाह एक शराबी की कहानी है जो एक जुनून में शराब छोड़कर समाज के सामने संदेश रखते है। बेनाम बादशाह के गानों के साथ ही इसकी कहानी को भी काफी पसंद किया गया। सुपरस्टार करन खान और सदाबहार अभिनेत्री मुस्कान साहू की दमदार अदाकारी ने सब कलाकारों को दिखा दिया की छॉलीवुड में ऐसी फिल्में भी बनाई जा सकती है। इस फिल्म में करन और मुस्कान के अलावा प्रणव झा ने भी कमाल कर दिया, सतीश जैन के बाद प्रणव झा ही एक ऐसा फिल्ममेकर है जिसके नाम से दर्शक जुटते है। बेनाम बादशाह में प्रणव झा ने बता दिया कि वे फिल्म मेकिंग के भी बादशाह है। उनकी पहली मूवी बीए सेकेन्ड ईयर और बीए फस्ट ईयर से बेनाम बादशाह को कमतर नहीं माना जा सकता। कलाकार भले ही बदले है लेकिन पेश करने का अंदाज और तेवर वही है।
फरवरी माह का आखरी शुक्रवार भी जाते-जाते भी एक लव स्टोरी देकर गया जिसका नाम है तोर मोर यारी। इसमें निर्माता है अजय त्रिपाठी और निर्देशित किये है प्रिंस विकास बर्धन ने। तोर मोर यारी में अहम किरदार में थे अजय त्रिपाठी, तानिया तिवारी, श्याम कुमार, शिव शंकर, प्रियंका साहू, प्रियंका प्रिया, दर्शन साहू, पुष्पेन्द्र सिंह, एजाज वारसी, आशीष सेंद्रे, सरला सेन, पुष्पांजली शर्मा, उपासना वैष्णव, मंदिरा नायक और ललित उपाध्याय। यह फिल्म छॉलीवुड के लिए इस वजह से भी खास है क्योंकि इसमें छॉलीवुड के बाबू जी यानी आशीष सेन्द्रे ने भी अभिनय किया है। शायद तोर मोर यारी ही उनकी आखरी फिल्म है जिसके बाद वे इस दुनिया को अलविदा कह गये। फिल्म की दूसरी बड़ी खासियत है पारिवारिक कहानी जिसमें एक-दो नही बल्कि पांच दोस्तों के किरदार को सूत्रधार बनाकर समाज में दोस्ती की नई परिभाषा रखने की कोशिश की गई। दो दोस्त तो बुजुर्ग है लेकिन तीन युवा है तो जाहिर है प्यार और रोमांश के गीत भी है, जो कि काफी कर्णप्रिय है।
छत्तीसगढ़ी भाषा की जब 5 फिल्में एक ही माह में रिलीज हुई तो टाकीज मालिकों के साथ फिल्म वितरक भी तारीख के लिये काफी मशक्कत करते दिखे। इस दौरान कई फिल्म मेकर तो अपनी पूर्व घोषित रिलीज तारीख को आगे टाल दिये किन्तु कुछ अपनी बात पर अड़े रहे और कम सिनेमाघर होने के बावजूद अपनी फिल्म को प्रदर्शित करने में सफल रहे। छत्तीसगढ़ में फरवरी का महीना बसंत के साथ ही मेला और आयोजनों का है तो दर्शकों के पास फिल्म देखने का समय भी होता है। ऐसे में भला फिल्मकार कैसे चुकते, धड़ाधड़ उतारने लगे अपनी फिल्मों को। दर्शक भी अच्छे मूड में दिखे सभी फिल्मों को भूरपूर प्यार मिला। कौन सी फिल्म कितनी कमाई किये ये अलग विषय है किन्तु जो दर्शक जोहार छत्तीसगढ़ और दईहान देखे वही दर्शक आजा नदिया के पार, तै मोर लव स्टोरी, बेनाम बादशाह और तोर मोर यारी भी समय निकाल कर देखने पहुंचे। 
छत्तीसगढ़ में बॉलीवुड की फिल्मे प्रमुखता से देखी जाती है क्योकि यहा अधिकांश सिनेमाघर बड़े शहरों में है जो कि हिन्दी भाषी बाहुल्य है। बड़े शहरों में आचंलिक फिल्म से कम लगाव और हॉलीवुड, बॉलीवुड से अधिक प्रेम होता है। इस दौरान उनके लिये बॉलीवुड के गन्स आफ बनारस, दूरदर्शन, कहता है ये दिल, तीन मुहूर्त, रिजवान, लापरवाह, थप्पड़, कुकी, हॉन्टेड हिल्स, ओ पुष्पा आई हेट टियर्स, स्वर्ग आश्रम, भूत: भाग एक- द हंटरर्ड सीप, द हंडर्ड बक, शुभ मंगल सावधान, लव आज कल और ए गेम कार्ल्ड रिलेशनसीप जैसी फिल्मे आई जो कि कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके। अब हिन्दी और छत्तीसगढ़ी की फरवरी में रिलीज फिल्मों की तुलना जनता की भीड़ देखकर करे तो छॉलीवुड की फिल्में ज्यादा लोकप्रिय रही है। 
इसे एक नये नजरिये से देखा जाये तो अब छत्तीसगढ़ का सिनेमाघर बाहर की फिल्मों का मोहताज नहीं है। छत्तीसगढ़ में ही इतनी फिल्में बनने लगी है कि साल भर उनको तारीख के लिये प्रतिक्षारत रहना होगा। निर्माता और वितरक के साथ अगर सिनेमाघर मालिकों का अच्छा तालमेल हो तो बॉक्स आफिस कलेक्शन भी धीरे-धीरे घाटे से मुनाफा की ओर जा सकता है। लगातार घाटे में चल रहे प्रोड्यूसर जब मुनाफा कमायेंगे तो फिल्म के अन्य सभी पर्दे व पर्दे के बाहर काम करने वाले लोगों को भी अच्छी तनख्वाह मिल सकेगी। फिल्म का बजट भी बढ़ेगा तब कही जाकर हम कह सकेंगे कि छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग का रूप ले रहा है।
फिल्म समीक्षक- 

जयंत साहू, रायपुर छत्तीसगढ़  
[ Mo- 9826753304 | Email- Jayantsahu9@gmail.com]

POPULAR POSTS