कोणार्क सूर्य मंदिर का अतीत और आज : यात्रा संस्मरण

कोणार्क सूर्य मंदिर का अग्रभाग

महाप्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी जी की पावन धरा ओडिशा राज्य का पुरी शहर अपनी कई ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के लिए विश्व विख्यात है। महानदी और महासागर से लिपटा ओडिशा राज्य में प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर, चंद्रभागा समुद्रतट, लिंगराज मंदिर, धौली बौद्ध मंदिर और उदयगिरि-खंडगिरि की प्राचीन गुफाएं आदि स्थान प्रसिद्ध हैं। हालांकि पर्यटन की दृष्टि से ओडिशा राज्य कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण उतना विकसीत नहीं हो पाया जितना होना था, फिर भी जो कुछ बचा है किसी अजूबे से कम नहीं। ओडिशा पर्यटन से यूनेस्को विश्व विरासत स्थल की सूची में शुमार कोणार्क का सूर्य मंदिर तो अपने आप में नायाब है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का पश्चभाग

कोणार्क ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से 65 किलोमीटर तथा पुरी से उत्तर-पूर्व दिशा में 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंद्रभागा समुद्रतट से महज 3 किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क का यह ऐतिहासिक धरोहर सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर के शिखर से उगते और ढलते हुये सूर्यदेव का दर्शन होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर का नजारा बेहद ही खूबसूरत होता है। सूरज की लालिमा से पूरा मंदिर परिसर लाल-नारंगी रंगमय दिखाई देता है। इस अद्भुत नजारें को देखने के लिये देश-विदेश से हजारों सैलानी प्रतिदिन कोणार्क पहुंचते हैं। कई ऐतिहासिक और धार्मिक गूढ़ रहस्यों को अपने गर्भ में समेटे, कोणार्क सूर्य मंदिर की अनुपम नयनाभिराम दृश्य देखकर सैलानी एक पल के लिये मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। और दूसरे ही पल मन में उमड़ने लगते हैं, सैकड़ों सवाल। इस अबूझ स्थापत्य कला को लेकर कब, कैसे, क्यों और किसने जैसे सवालों का जवाब, यत्र-तत्र बिखरे अवशेष स्वयं ही अपनी कहानी बयां करता है। 

कोणार्क सूर्य मंदिर का प्रस्तर

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव ने 1250 ईस्वी में करवाया था। कई इतिहासकारों का मत यह भी है कि कोणार्क मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ईस्वी के बीच हुआ था। इसे यूनेस्को द्वारा सन् 1984 में 'विश्व धरोहर स्थल' घोषित किया गया है। तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सात में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ आरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के आठों पहर को दर्शाते हैं। स्थानीय लोग भगवान सूर्य को 'बिरंचि नारायण' भी कहते थे।

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। मुख्य मन्दिर तीन मंडपों में बना है। इनमें से दो मण्डप अब ढह चुके हैं। इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं: बाल्यावस्था- उदित सूर्य, युवावस्था- मध्याह्न सूर्य, प्रौढ़ावस्था- अपराह्न सूर्य। इसके प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है। कहा जाता है ये वही स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं।

कोणार्क सूर्य मंदिर का अशोक चक्र

मंदिर का एक-एक कोना अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवान, देवता, गंधर्व, मानव, वाद्य, प्रेमी युगल, दरबार की छवियां, शिकार एवं युद्ध आदि के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच-बीच में पशु-पक्षियों और पौराणिक जीवों के अलावा महीन और पेचीदा बेल-बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्ट गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग ही दिखाई देती है। अब आंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुके इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग लगा हुआ है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला

कोणार्क सूर्य मंदिर का शिल्पकला
टीप- उपरोक्त फोटोग्राफ ब्लॉगर द्वारा यात्रा के दौरान मोबाइल से खींची गई है। लेख का आधार ओडिशा की जनश्रुति है जिसमें तथ्यहिन ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक शब्दावली भी हो सकती है। जय जगन्नाथ...

- ब्लॉगर 
जयंत साहू, रायपुर छत्तीसगढ़









कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़े बारह आसान सवाल और उनके जवाब


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ईस्वी के बीच हुआ था।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर निर्माण गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव ने करवाया था।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। इस मंदिर में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का नजारा अद्भुत होता है। मंदिर के निर्माण में कई रहस्यमयी कथा किवदंतियों के साथ इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में बारह पहिए बनाये गये है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में सात घोड़े रथ खींचते बताये गए हैं।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में 1984 में शामिल किया गया।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण कलिंग शैली में हुआ है।


उत्तर- कोणार्क का सूर्य मंदिर का बारह चक्र माह को तथा आठ आरा आठों पहर को दर्शाता है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। 


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर तीन मंडपों से बना हुआ है।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर में सूर्य की तीन प्रतिमाएं है: बाल्यावस्था- उदित सूर्य, युवावस्था- मध्याह्न सूर्य, प्रौढ़ावस्था- अपराह्न सूर्य।


उत्तर- कोणार्क सूर्य मंदिर पर्यटक सड़क, रेल व हवाई मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। यह ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से 65 किमी तथा जगन्नाथ पुरी शहर से 35 किमी की दूरी पर स्थित है। देश से बाहर के पर्यटकों के लिये भुबनेश्वर से अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवा भी उपलब्ध है। स्थानीय पर्यटक रेल मार्ग से पुरी पहुंचकर बस व टेक्सी से कोणार्क पहुंच सकते हैं।

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