यवनिका समाज को देगी नई दृष्टि


भारत की बेटियां किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। उनकी सफलताओं की कई कहानी रोज अखबारों की सुर्खियां होती है। लेकिन उन सबके बीच कहीं अभाव में या किसी दिव्यांगता के बावजूद सामान्यजनों से प्रतियोगिता कर कोई बेटी बड़ा मुकाम हासिल कर लेती है तो देश को गर्व होता है। ऐसा ही एक आंखों को यकीन न होने वाला काम कर गई दिल्ली की दिव्यांग बेटी यवनिका, जो देख नहीं सकती, ने हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रायपुर में बीएएलएलबी (ऑनर्स) में टॉप की है। उनको प्रोफेशनल एथिक्स में गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है। यवनिका को यह गोल्ड मेडल यूनिवर्सिटी के पांचवें दीक्षांत समारोह में चीफ जस्टिस आफ इंडिया एवं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में प्रदान किया गया।


यवनिका देख नहीं सकती है लेकिन उन्होंने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं माना, अपितु ताकत बनाकर हर मुश्किलों का सामना किया। जब मन में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो रास्ते अपने आप बनते हैं, केवल लगन और आत्मविश्वास के साथ कठिन परिश्रम करते रहना है।

यवनिका को वकालत के क्षेत्र में मिला गोल्ड मेडल न केवल उस बेटी की काबलियत को दर्शाता है बल्कि समाज के अन्य वर्ग के लोगों को भी नई दिशा दिखा रही है कि दिव्यांगता मार्ग का बाधक नहीं है। हां सामान्यजनों से आप थोड़े अलग जरूरत होते है, कुछ अतिरिक्त सुविधाओं की जरूरत होती है। साथ ही हौसला और प्रोत्साहन मिले तो यवनिका जैसी कई बेटियां पदक की रेस में शामिल हो सकती है।

दृष्टिहीन यवनिका अच्छे परिवार से आती है इसीलिये उनका लक्ष्य बड़ा था, और कामयाब भी रही। अब आगे उनका सपना है कि वे समाज में दिव्यांजनों को जो लोग कमजोरी के रूप में देखते है उनके लिये कुछ काम करेंगी। मानसिक रूप से पिछड़े समाज को आत्मविश्वास के साथ नई दिशा देना चाहती है। यवनिका पर देश को जितना गर्व हो रहा है उतना ही उनके माता-पिता पर भी है। यवनिका के माता-पिता ने अपनी बेटी की हर जरूरत को पूरी की। कभी उनको यह अहसास नहीं होने दिया की उनकी शारीरिक कमजोरी सफलता में बाधक है। आज के दौर में हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं। दिव्यांग होने पर तो जिम्मेदारी और भी बड़ जाती है। उनको इतना काबिल बनाये कि सामान्यजनों सा उनका जीवन भी सरल और सहज हो जाये।


शासन-प्रशासन ने भी शारीरिक कमजोरी को दिव्यांग कहकर लोगों का नजरिया बदलने की कोशिश जरूर की है, लेकिन यह नकाफी है। दिव्यांग शब्द से उनकी कमजोरी को छिपाने से बड़ा काम उनके करियर को सवांरने की दिशा में करना होगा। अकसर देखा जाता है कि जिनके पालक अमीर होते हैं वे अपने बच्चों के लिये तमाम सुविधायें खरीद लेते हैं। लेकिन जो गरीब परिवार में जन्म से दिव्यांगता लेकर आते हैं उनके लिये जीवन आसान नहीं होता है। कुछ को तो नियती मानकर उन्हें उनके हाल कर छोड़ देते है। ऐसे में प्रेरणा बनती है यवनिका जैसी बेटियां जो सामान्यजनों के साथ प्रतियोगिता करके बड़ा मुकाम हासिल करती है। समाज में शारीरिक अक्षमता वाले व्यक्ति के लिये दिव्यांग शब्द को प्रचलन में लाने से बेहतर उनके प्रति अपनी सोच और नजरिया बदलेे। जन्मदाता तो पालक है ही, समाज को भी अभिभावक के रूप में दिव्यांगजनों के साथ खड़ा होना होगा।


- जयंत साहू
डूण्डा-रायपुर
मो. 9826753304


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