अति के अंत कब?

छत्तीसगढ़ के मनखे मन बढ़ सिधवा होथे, भोला-भाला, मेहनत करइया होथे अइसन गोठ ह अब झूठ-लबारी लागथे। खास करके बस्तर बर तो अऊ अपने निंदा लागथे। जेन प्रकृति के कोरा म हाबे तेने मन निरीह होगे हाबे तव दूसर के का मानी पिबे। जब ले छत्तीसगढ़ म चुनई के घमासान माते हे तब ले नक्सली मन के उपद्रोह ह नंगत बाढ़गे हाबे। माओवादी मन किथे हम कोनो निर्दोष के हतिया नइ करन, अपन हक बर लड़त हाबन। का हक खातिर लड़त हव? काकर हक खातिर लड़त हव? का ये लड़ई के रसदा बने हाबे इहू कोति वोमन ल सोचना चाही। काबर की अब इकर घेखरई म कतको निर्दोष के मउत होगे हाबे। अभीच-अभी येमन ह अऊ नंगत तपत हाबे। 11 मार्च के झीरमघाटी म 15 झिन ल मार के ढलगा डरिस। अभी 12 अप्रेल के अऊ 14 झन ल मार डरिस। बस्तर लोकसभा के चुनई बुता म लगे जवान अउ चुनई करमचारी मन ल ओकर गाड़ी सुद्धा बारूद ले उड़ा दिस। येमन 10 अप्रेल के चुनई ल बने रकम ले निपटा के केंप म रूके रिहिन, बाद म उहां ले मतपेटी ल जगदलपुर लेगत-लेगत नक्सली हमला म मारे गिस। आगू दिन अइसने हमला दरभा घाटी म होइसे। 6 झिन सीआरपीएफ के जवान मन तबीयत बने नइ हाबे किके संजीवनी 108 म चड़गे। ओ कोति नक्सली मन ताक म रिहिन अउ एंबुलेंस ल उड़ा दिस। बपरा मन संजीवनी म बइठे मउत के दुवारी चल दिस। ये गाड़ी म जवान मन के संगे-संग संजीवनी 108 के करमचारी मन तको अपन परान गवां दिस। का दोस रिहिस मरईया मन के, का बिगाड़ करत रिहिस। नक्सली मन के का बुता बनथे मार-काट मचाये ले उहीच मन जानही। निर्दइ नक्सली निदई शासन-प्रशासन। नक्सली मन तो अब अपने बात म अडिग नइ राहत हाबे। न कोनो सिद्धांत बांचे हे न कोनो नेक विचारधारा हे। शासन-प्रशासन ये पाय के निर्दइ हे कि ओमन जानसून के नक्सली माड़ा म छोटे करमचारी मन ल पठोथे। अतेक बाटूर सेना अउ पुलिस के राहत ले आठ दस, आठ दस ल पठो-पठो के मरवावत हाबे। जतेक हमर देश म सेना अउ पुलिस हे सबो जाही ते नक्सली मन एकेच मुठा होही। मुठा भर नक्सली मन अपनेच माड़ा म आए जवान मन उपर हमला करथे। माओवादी मन हित अउ हक बर लड़थे तव जंगले म काबर खुसरे हे। हितवा मन के नियत अब दिखत हाबे। कभु एंबुलेंस कभु सवारी बस त कभु गांव बसुंदरा के रहइया मन ल मार देथे। हितवा बनथव तव जेकर सो बैर हे तेकर सो आके लड़व तब जानबोन। शासन-प्रशासन तो मिठ लबरा हाबेच कतको हमला होगे तभो ले अपने म मगन हाबे। तातेतात म रो लेथे, मुआवजा के घोसना कर देथे। चिता के आगी जुड़ाय के बात फेर जस के तस। जांच के आदेश होथे फेर का जांच होइस पता नहीं। राजधानी म बइठे थूके-थूक म बरा चूरोवत बिकास के सपना जनता ल देखावत रिथे। निर्दइ हतियारा मन के संगे-संग शासन ल अब उहां के आदिवासी मन के दशा-दिशा सुधारे के काम करवाना चाही। आदिवासी भाई-बहिनी मन के अस्तित्व अउ अस्मिता खातिर बने साव चेत करके कुछ कदम उठावे ताकी नक्सली मन ओकर भरोसी अउ हितवा-मितवा झन बन सकय। जवान मन ल बला-बला के जुझवाए भर ले बात नी बने अऊ दूसर रसदा कोति तको धियान करे बर परही। नक्सली मन जवान मन ल सिरवाही, जवान मन नक्सली मन ल सिरवाही। येकर नतीजा इही निकलही कि मानवता के नाव मेटा जही।

POPULAR POSTS