देश में 500 और 1000 का नोट अब रद्दी हो गया, प्रधानमंत्री के औपचारिक घोषणा के बाद से। इसे कालाधन जमा करने वालों के खिलाफ एक ब्रह्मास्त्र के रूप में देखा जा रहा है। अचानक ही नोट बंदी के ऐलान ले सबको हैरत में डाल दिया। प्रधानमंत्री के द्वारा की गई इस बड़ी कार्रवाई ने न केवल देश में बल्कि पूरी दुनियां में खलबली मचा दी है। दूसरे ही दिन से 500 और 1000 के नोट बेकार हो गये। आधी रात में लोग विस्तार से जानकारी लेने समाचार चैनलों में डटे रहे। सुबह के अखबारों में पुराने नोटों के बारे में टोह लेने लगे आखिर जमा नोटों का क्या होगा? मोदी जी ने 30 दिसंबर तक नोट बदलने का समय देकर कुछ राहत जरूर दिया है किन्तु नोटों को बदलने की शर्तों ने आम आदमी को परेशान कर रखा है। रोज कमानें और रोज खाने के सामान जुटाने वाले लोगों की जिंदगी रूक सी गई है। सब का ध्यान अब सिफ 500 और 1000 के नोट पर है। सुबह-सुबह बैंकों के सामाने जुटते भीड़ से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि नोटों के अहमियत कितनी है दैनिक जीवन में। सबका होश उड़ा देने वाले नोट बंदी के फैसले का सभी वर्गों ने स्वागत किया है और यह कहा जा रहा है इससे आज आम आदमी परेशान जरूर है किन्तु उन्हे चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। जो अपनी मेहनत का कमाई जमा किये है उन्हे खबराने करने की जरूरत नहीं है, कुछ ही दिनों बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा। किन्तु तो जो लोग कालधन जमा करके रखे है उनकी नींदे उड़ी हुई गई, नोटों के बंडल उनके लिए गले कि हड्डी साबित हो रहा है।
4-5 दिनों के ताजा जानकारी के अनुसार नोट बंदी से बैंको में रिकार्ड तोड़ रकम जमा हुये है। ये नोट किसी काले धन का नहीं अपितु मेहनत की कमाई वाले मध्यम वर्गीय परिवारों के बैंक खातों में जमा हुये है। कई लोग अपनी बेटियों की शादी के लिए जमा करके रखे थे तो कई लोग फसल बेंच कर रूपये जमा करके रखे थे। बैंकों में नोट बदलने के कतार में भी वही लोग खड़े है जिनके पास बमुश्किल लाख रूपये होंगे। अपने लाख रूपये के लिए आम आदमी इसलिए चिंतित है क्यो ये उनकी खुन पसीने की कमाई और किसी कारण से बैंक में जमा नहीं करा पाये थे। छोटे और मध्यम वर्गीय परिवार का जमा धन बैंक में आने से ही बैंकों का रिकार्ड टूट गया तो सोचिए जब धनकुबेरों के घर से रूपये निकलेंगे तो क्या हाल होगा? बहुत अच्छी पहल कि गई है प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा इसमें को कोई दो मत नहीं। भविष्य में इसमें किसी प्रकार का कोई संशोधन अथवा शिथिलता धनकुबेरों के दबाव में नहीं होनी चाहिए। रही बात आम आदमी की परेशानी की तो अभी तो महज पांच ही दिन ही बीते है, धीरे-धीरे स्थिति सामान्य भी होने लगी है। ऐसे में जो लोग हाय-तौबा मचा रहे है वो आम आदमी नहीं, शायद उनके भी कलाधन हो। आम आदमी को इस मुश्किल के दौर में थोड़ा हौसला रखने की जरूरत है। धैर्य रखे देखों नेता-अफसर, मंत्री-संत्री, चोर-लुटेरे और साधु-संतों के ब्लैकमनी। कुछ धार्मिक ठिकाने जैसे- मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और गिरजा घरों से भी अकूत सम्पत्ति निकलने वाला है। हम तो थोड़े-थोड़े में ही बहुत चिंता कर रहे है, जरा तमाशा देखिए उनका जिनके पास करोड़ों-अरबों रूपये है वो कैसे चिन-ता ता, चिता-चिता कर रहे है।
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