छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार बहरहाल सत्ता में तीसरी पारी खेल रहे हैं। उनकी टीम मजबूत स्थिति में भी दिखाई पड़ रहा है। प्रदर्शन इसी तरह रहा तो विपक्ष को विधानसभा में बैटिंग करने का मौका ही न मिले। किन्तु सरकार के ही कुछ विभागीय मंत्री-अफसर सरकारी योजनाओं का इस तरह से बवंडर कर रहे है कि जैसे आजादी के बाद पहली बार जनहित के लिए काम हो रहा है। योजनाएं पहले भी जनहित के लिए होती थी, अब भी है। अंतर केवल कार्यप्रणाली का है, कुछ मंत्री और अफसर अच्छा काम कर रहे है। कुछ तो अपनी विभागीय कर्मचारियों का मजदूरों की तरह दबाव में काम करवा रहे हैं। मंत्री जी की दबंगाई कुछ हद तक जनहित के नजरियें से जायज है। पर क्या जवाबदेही केवल अफसरों और सरकार की है, जनता की कुछ नहीं। लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभाते चले तो लोक सुराज अभियान का बेहतर परिणाम आ सकता है।
सरकार जिस तरह से हर दिन एक नई योजना लॉच करती है उसका एक तिहाई भी जनता लाभ नहीं उठा पाते है। सत्ता किसकी है और कुर्सी में कौन-कौन बैठे थे इस विषय को नजर अंदाज कर आजादी के बाद से अब तक चल रहे योजनाओं की बात करे तो पचास प्रतिशत भी परिणाम नहीं आया। अरबों की जनसंख्या के कारण केंद्र की योजना सत प्रतिशत सफल नहीं हुये। लेकिन तीन करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में सत प्रतिशत परिणाम न आना संशय पैदा करता है उनकी कार्यप्रणाली पर।
योजना में कोई खोट नहीं है जनता के लिए लाभकारी है किन्तु क्या कारण है हितग्राही नहीं मिलते है? योजना बनाते समय उसकी नियमावली भी बनाई जाती है ताकि सही व्यक्ति को योजना का लाभ मिले, इसके बावजूद भी योग्य व्यक्ति वंचित हो जाते है। शासन-प्रशासन से इस विषय में सवाल करेंगे तो दोषी जनता ही है, क्यों उन्होने इसका लाभ नहीं लिया।
छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाओं का जमीनी स्तर पर भी अच्छे परिणाम आ रहे है। स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और ग्रामीण विकास की दिशा बेहतर काम हो रहा है। इसका एक कारण जनदर्शन और लोक सुराज अभियान भी है। सरकार जनता के बीच पहुंच कर सीधे उनको लाभ पहुंचाने में लगी है। जब से लोक सुराज अभियान का शंखनांद हुआ है तब से प्रत्येक योजना के हितग्राही मिल रहे है। लोक सुराज शिविर में सभी विभागों के अधिकारी कर्मचारी उपस्थित होते है और जनता से आवेदन लेते है। इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि मौके पर ही आवेदन का निराकरण कर दिया जाता है। दोनों पक्ष मौके पर ही होते है फरियादी और संबंधित विभाग इसी कारण तुरंत फैसला हो जाता है।
कुछ जगहों पर तो ऐसा भी देखने को मिला कि लोग सुराज दल को ही बंधक बना लिया। कहीं-कहीं पर तो जनता ले सुराज दल को बैठने ही नहीं दिये। विभागीय कार्य में लगे कर्मचारियोंं के साथ ऐसा व्यवहार अनुचित है किन्तुु जनता भी क्या करे साल में एक दिन गांव और मोहल्ले में आने वाले कर्मचारी गुस्से के शिकार तो होंगे ही। जिन योजनाओं की जानकारी लेने, आवेदन देने आदि कार्यों उनके ऑफिस जाते चप्पले घिस जाती है किन्तु काम नहीं होता था। उन्ही कार्यों को एक दिन के शिविर में कर दिया जा रहा है। जो काम साल भर से कोशिश करने बाद भी नहीं होता वो काम एक दिन के सुराज शिविर में निपट जाता है। अफसरों को जनता से अचानक इतना लगाव कैसे हो गया है, लगता है उनका जमीर जाग गया होगा या फिर अपनी नौकरी बचाने के लिए यह सब किया जा रहा हो। कारण जो भी हो पर इसमें जनता का भला हो रहा है। तमाम सरकारी योजनाओं की जानकारी जनता को घर बैठी मिल रही है। और शिकायत के बाद तुरंत समस्या का निराकरण भी। इतनी मुस्तैदी और जिम्मेदारी से काम हो रहा है लोक सुराज अभियान में कि लगता है वाकई अच्छे दिन आ गये है।
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