Hartalika teej 2021 | तीजा यानी हरतालिका तीज का व्रत 9 सितंबर को रखेंगी महिलाएं, मायके में सुख-समृद्धि के लिये होगी महादेव की उपासना... जानें व्रत कथा और पूजन विधि



तीजा teeja यानी हरतालिका तीज (Hartalika Teej) का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को रखा जाता है जो कि इस बार 9 सितंबर 2021 को आने वाला है। तीज का व्रत पर्व भारत के कई प्रांतों में धूमधाम से मनाया जाता है। अन्य पर्वों की तरह तीज को मनाने की पूजन विधि के साथ ही व्रत के नाम में भी आंचलिक विविधताएं होती है। उत्तर भारत में इसे हरतालिका तीज, मध्य भारत के कुछ प्रांत में कजरी तीज कहा जाता हैं और छत्तीसगढ़ में इसे तीजा पर्व के रूप में मनाया जाता है। 

छत्तीसगढ़ में तीजा का पर्व(Teeja festival in Chhattisgarh)- 

छत्तीसगढ़ में तीजा का पर्व आस्था और सौहाद्रपूर्वक भादो के अंजोरी पाख की तीज को मनाया जाता है। विवाहित औरतों को ससुराल से तीजा लाने के‍ लिए मायके से भाई, भतीजा, पिता आदि जाते हैं। नई नवेली को तीजा के लिए हरेली (Hareli Festival) के बाद लिवाने जाते हैं वहीं अन्य महिलाओं को राखी (Rakshabandhan) अथवा पोरा के बाद लिवाने की परंपरा लोक में प्रचलित है। तीजा का पर्व छत्तीसगढ़ में महिलाएं मायके में आकर मनाती हैं। भादो के दूज की रात को महिलाएं मायके पक्ष के रिश्तेदारों के घर ‘करू भात’ खाने जाती हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को करेला की सब्जी का भोजन कराया जाता है चूंकि करेला (Bitter gourd Vegetable) कड़वा होता है जिसका छत्तीसगढ़ी में शाब्दिक अर्थ ‘करू’ है शायद इसी वजह से करू भात नाम प्रचलन में आया होगा। 

तीज को महिलाएं दिन से रातभर तक उपवास रखती हैं। 36 घंटे का यह सबसे लंबा समय का कठिन व्रत है। इस व्रत को मायके में विधवा औरतें भी रखती है। ऐसी नव विवाहिता जिनका प्रथम तीज व्रत होता है उनके लिये मायके में विशेष तैयारी की जाती है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत के साथ ही रात को जागरण कर देवो के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। ग्राम्य संस्कृति में महादेव व पार्वती की पूजा प्रतिकात्मक रूप से गौरा-गौरी के रूप में होता है। प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान, मांगलिक आयोजन आदि में मिट्टी अथवा गोबर से गौरा-गौरी बनाई जाती है। इसी तरह से तीज के अवसर में भी महादेव और पार्वती की पूजा मंदिर आदि में करने के बजाए महिलाएं अपने-अपने घरों में मिट्टी से शिवलिंग बनाकर करती हैं।

तीज के दूसरे दिन को छत्तीसगढ़ में ‘फरहार’ कहा जाता है अर्थात फलाहार से उपवास को तोड़ा जाता है। लोक शब्दावली में इस दिन के फलाहार को फरहार अथवा ‘बासी’ भी कहा जाता है। ‘बासी’ को महिलाएं रात्रि में बनाकर रखती है जिसमें छत्तीसगढ़ी व्यंजन बरा, सोहारी, ठेठरी, खुरमी, अरसा, गुलगुला भजिया आदि शामिल होता है। महिलाएं एक दूसरे के घर ‘बासी’ खाने जाती हैं। इस दौरान महिलाओं को यथा उचित भेट स्वरूप रूपए, वस्त्र आदि दी जाती है।

छत्तीसगढ़ के लोक पर्व सावन में हरेली, राखी और भादो में कमरछठ, जन्माष्टमी और पोरा के बाद तीजा का विशेष महत्व होता है। तीजा के विषय में कहा जाता है कि यह पति की लंबी आयु के लिये रखी जाती है। छत्तीसगढ़ संदर्भ में देखे तो यहां विधवा औरतें भी व्रत रखती हैं और सभी विधि विधान मायके में संपन्न होता है जिसके आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि मायके की सुख-समृद्धि के लिये भी यह व्रत रखा जाता होगा। महादेव की पूजा से पार्वती का संबंध है और इससे एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसमें पार्वती महादेव को पति रूप में पाने के लिए कठिन व्रत करती हैं। इस आधार पर पति की लंबी आयु और कुवांरी कन्याएं अच्छे वर की कामना से इस व्रत को करने लगी हैं।   

उत्तर भारत में हरतालिका व्रत- 

हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है। यह व्रत भाद्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है। इस दिन स्त्रियाँ महादेव-पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत में पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। कहा जाता है विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवती मन मुताबिक वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। 



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