छालीवुड में नई कहानी का आगाज...
फिल्म का नाम- लगन मोर सजन से
डायरेक्टर- वैभव अम्बष्ट
निर्माता- आर. डी. हाडा
सह निर्माता- अशोक कुमार सिंह
कथा, पटकथा-
कृष्ण कुवंर
संवाद- डॉ. मोहनलाल साहू
गीत- विजय
सिंह, चंद्रप्रकाश
संगीत- वैभव
अम्बष्ट, सुनील सोनी
कोरियोग्राफर- निशांत उपाध्याय, चंदन दीप
छायांकन- तोरण
राजपूत, सिद्धार्थ सिंह
कलाकार- अरुण
कुमार, नीलम देवांगन, बाली कुर्रे, विनय
अम्बष्ट, पवन गुप्ता, हेमलाल कौशल, प्रदीप शर्मा, संध्या माणिक,
उपासना वैष्णव, अलेना
डेविड, धर्मेंद्र चौबे, आनंद गुप्ता और कृष्णनंद तिवारी।
लक्ष्य इंटरटेनमेंट वर्ल्ड फिल्मस् के बैनर
तले बनी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'लगन मोर सजन से' का छालीवुड के सिनेमा जगत में नई पटकथा को लेकर
काफी चर्चा है। अब तक की बनी छत्तीसगढ़ी फिल्मों से यह काफी अलग है और अपनी
कहानी के दम पर फिल्म दर्शकों की तालियां बटोर
रही है। 'लगन मोर सजन से' नाम से ही यह एक वैवाहिक कहानी है इतना
तो भान होता
है किन्तु देखने
पर यह एक सस्पेंस थ्रिलर मूवी
है जिसकी कहानी
दद्दा जी (विनय
अम्बष्ट) के घर से शुरू होती
है, दद्दा जी एक रसूखदार व्यक्ति है हालांकि फिल्म
में उनके व्यवसाय और परिवार के बारे में ज्यादा कुछ दिखाया नहीं
गया है। दद्दा
जी अपनी भतिजी
आशा की शादी
में गीत-संगीत
का पूरा जिम्मा अपने शागिर्द जय (बाली कुर्रे) को सौंपता है। जय शादी में गाना
गाने के लिये
गांव से अपने
दोस्त बंशी (अरुण
कुमार) को बुलाता है। शादी समारोह में चंदा (नीलम
देवांगन) भी आती है जो दद्दा
जी के दोस्त
प्रदीप की बेटी
है। बंशी और चंदा के बीच पहले तो नोकझोक चलती है और फिर धीरे-धीरे
दोनों में प्यार
हो जाता है।
बंशी को जब अपनी और चंदा
की हैसियत का अंदाजा होता है तो वह उसे छोड़कर गांव वापस
आ जाता है। अलग होने के बाद दोनों के भीतर का प्यार
उमड़ने लगता है, चंदा बंशी से मिलने उनके गांव
चली जाती है। इस बात की भनक चंदा के पिता को दद्दा
जी के माध्यम से होता है। चंदा के पिता
पहले तो इस रिश्ते से काफी
नाराज होते किन्तु बेटी के प्यार
के आगे विवश
होकर स्वीकार कर लेते है। बंशी
और चंदा घर से भाग कर मंदिर में पहुंचते है तभी गांव
से पूजा (संध्या माणिक) का बंशी
को फोन आता है। बंशी गांव
पहुंचकर देखता है कि किसी ने पूजा के पीठ पर चाकू घोप दिया है। पूजा
की हत्या का आरोप बंशी पर लगता है, कोर्ट
उसे उम्रकैद की सजा सुनाता है किन्तु बंशी जेल ले जाने के दौरान फरार हो जाता है। दद्दा
जी एसपी को डांटते हुए और उसे पकड़ने के लिये अपने गुंडे
भेजते है जिसे
बंशी पहचान लेता
है और असलियत बताने के लिए चंदा के घर जाता है , वहा भी चंदा के पिता का खून हो जाता है और इल्जाम फिर बंशी पर लगता
है। तमाम वारदात कुछ इस तरह से होता है कि दर्शक मुख्य
विलेन तक ही नहीं पहुंच पाते।
अंत में आरोपी
पकड़ा जाता है और फिल्म एक सुखद मोड़ पर आकर समाप्त हो जाती है।
अब पर्दे के पीछे की बात की जाए तो निर्देशक और लेखक
के बीच का तालमेल साफ झलकता
है, दोनों का काम बेहतरीन है। फिल्मी की कहानी
लोगों को बांधे
रखती है और पूरी फिल्म में कहीं भी अनावश्यक सीन नहीं है। हास्य का पंच भी ठीक-ठाक लगा है, चूकी
यह एक सस्पेंस मूवी है इस लिहाज से हास्य
के सीन बहुत
थोड़े ही है। हास्य की शुरूआत बंशी से होती
है लेकिन हॅसाने का काम जॉनी
यानी हेमलाल कौशल
ने अपने अंदाज
में खूब किया
है। चरित्र अभिनेताओं की अदाकारी की बात की जाए तो बड़े पर्दे
पर नये चेहरे
को लोग आसानी
से स्वीकार नहीं
करते किन्तु इस मामले में अरूण
कुमार भाग्यशाली साबित हुऐ उनके काम को सराहा जा रहा है नीलम
देवांगन और बाली
कुर्रे को भी काफी समय मिला
दर्शकों बीच अपनी
छाप छोड़ने के लिये जिसमें वे सफल रहे। प्रदीम शर्मा और उपासना वैष्णव को शायद
ज्यादा कुछ करने
का अवसर नहीं
मिला।
अब गीत-संगीत
की बात करे तो कुछ खास जुबा पे चढ़ने
वाली बात नहीं
दिखी। 'सुन-सुन ओ टूरी दिवानी बन जा मोर दिल के रानी',
'मन के बसुरियां म सपना साधे
तन मोर नांचे
ना' जैसे गीतों
के साथ फिल्म
का टाइटल सांग
'करके लगन जोड़ी
ले जाना मोला
अपन साथ म' का मीठा बोल और प्यारा संगीत
मन मोह लेता
है।
फिल्म में खूबियां तो बहुत है किन्तु अब थोड़ी
खामियों पर नजर दौड़ाई जाये तो बंशी और चंदा
दोनों को गवइया
बताया गया है जो फिल्म में लापता है। फिल्म
की हिरोइन करोड़पति और बड़े शहर की लड़की है पर नाम है चंदा। दूसरी पात्र
गांव की छोरी
जिसे पूजा नाम दिया गया है। फिल्म में एक सीन है बंशी
और चंदा की नोकझोक का जिसमें चंदा बंशी के सीने में खुजली
वाला पाउडर डालती
है किन्तु बंशी
सीने को खुजलाने के बजाए पीठ खुजाता है यहा तक की दवाई
भी पीठ पर ही लगाई जाती
है। दद्दा जी को रसूखदार कहा गया है किन्तु फिल्म से ऐसा लगा नहीं। हां एक और पात्र
बड़ा अजिब सा लगा वो है इंस्पेक्टर विक्रम सिंह।
रौब तो इतना
था कि अपने
से सीनियर अफसर
को सलाम तक नहीं करता था। उस इंस्पेक्टर का सीन थोड़ा ही है किन्तु ऐसा महिमा मंडित पात्र
बनाया गया है जैसे वही फिल्म
के हीरो है।
इस फिल्मी चर्चा
से यदि आपके
भी मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर
असल आरोपी है कौन?
तो इसके लिये
आपको पूरी फिल्म
देखनी होगी, जिसमें अमीरी-गरीबी और गांव-शहर की सीमा लांघते हुये
बंशी और चंदा
की प्रेम कहानी
के अलावा लाचार
माता-पिता है जो अपनी संतान
की खुशी के लिये उनके प्यार
को स्वीकार कर लेते है। हर कदम पर साथ निभाने वाला एक सच्चा दोस्त भी है फिर भी फिल्म 'लगन मोर सजन से' का नायक आखिर किसके
षडयंत्र का शिकार
है!
फिल्म समीक्षक- जयंत साहू
9826753304
jayantsahu9@gmail.com
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