खूंखार मानवों से मासूम जानवरों का सामना कराता जंगल सफारी नया रायपुर

प्रकृति प्रेमी सैर-सपाटे के लिए ऐसी जगहों में जाना ज्यादा पंसद करते है जहां मन आनंद से भर जाए और तन में नई ताजगी आए बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के। परिवार के साथ बाहर घुमना हर कोई चाहता है किन्तु घर को छोड़कर लम्बी दूरी की यात्रा सभी नहीं कर पाते है। ऐसे में अगर आसपास ही कोई सैर-सपाटे लायक अच्छा माहौल मिल जाये तो लोग बिन-बिचारे घुम आते है। शायद इसीलिए हाल ही में अस्तित्व में आया नया रायपुर का जंगल सफारी पर्यटकों से गुलजार होता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ के वन विभाग द्वारा लगभग 12 सौ एकड़ में तैयार जंगल में हिरण, शेर, बाघ, भालू, मगरमच्छ, नीलगाय, बारहसिंगा आदि जानवरों के साथ अनेक प्रजाति की तितली, पक्षियां आदि स्वछंद विचरते दिखेंगे। 
राजधानी के नया रायपुर क्षेत्र में विकसित हो रहे जंगल सफारी एवं बॉटनिकल गार्डन को प्रदेश सरकार रायपुर के सबसे बड़े मनोरंजन एवं शिक्षण केंद्र के रूप में तैयार कर रहा है। जिसमें 800 सौ एकड़ के जंगल सफारी को पूर्ण कर आम जनता के लिए सशुल्क 1 नवंबर 2016 से खोल दिया गया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आतिथ्य में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 2016 के शुभारंभ पर शानदार तरीके से लोकार्पण होने के उपरांत देश-विदेश के पर्यटक जंगल सफारी को देखने के लिए उत्सुक हैं। यह नंदन वन जंगल सफारी रायपुर रेलवे स्टेशन से 35 किमी, रायपुर बस स्टैंड से 30 किमी और स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
किन्तु वर्तमान में जंगल सफारी जितना सुनने में काबिल-ए-तारीफ लगता है उतना ही देखने के बाद नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। विभाग के ब्रोसर और घोषणा में जिन-जिन बातों का उल्लेख किया गया है उस पर हकीकत कुछ और कहता है। शहर के बीचो-बीच बना जंगल ग्रामीणों की कृषि भूमि, निस्तारी तालाब, सिचाई के लिए बने जलाशय, चारागाह, गांव की पगडंडी आदि की भूमि में विकसित किया गया है। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि खंडवा, पचेड़ा, मुड़पार भेलवाडीह आदि गांवों के किसानों के कृषि लायक जमीन को पांच लाख रूपए प्रति एकड़ मुआवजा देखकर खाली कराया गया है। एक तरफ तो वन विभाग जंगल बचाने के लिए वर्षों से काबिज ग्रामीणों को वन भूमि से खदेड़ कर अन्यत्र व्यवस्थापित कर रहा है वही दूसरी ओर शहर में मनोरंजन का केंद्र स्थापित करने के लिए लोगों को गांव से खदेड़ने को आतुर है। ग्रामीणों के विरोध और निवेदन पर कुछ युवाओं को गाइड, वाहन चालक और सिक्युरिटी गॉड के रूप में रोजगार मुहैया जरूर कराया गया है किन्तु वह भी अस्थाई तौर पर। उस सरकार यह तर्क दे रही है कि गांव वालों के लिए रोजगार के नये-नये रास्ते खुलेंगे। कृषि भूमि से बेदखल किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या मुॅह खोल रही है। ग्रामीणों की समस्या को दरकिनार कर सरकार का ये कहना कि जंगल सफारी को वाशिंगटन और न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क के तर्क पर तैयार किया जायेगा एक तमाचा जैसे लगता है। कानून और संविधान के लिये अपवाद हो गये है नई राजधानी क्षेत्र के मूल निवासी और एनआरडीए। आश्चर्य होता है उनके साथ हो रहे सौतेले व्यवहार को देखकर। यह पहली परियोजना नहीं है जिसमें किसानों की कृषि भूमि की बलि दी गई बल्कि पूरी नई राजधानी का यही किस्सा है। परियोजना जितनी बड़ी होती है वह उतनी ही बड़ी जमीन मांगती है। नई राजधानी की तमाम बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास से लेकर लोकार्पण तक केंद्रीय स्तर के बड़े-बड़े नेता पहुंचे, सभी ने तेजी से बदलते रायपुर को देखा किन्तु बदलाव के भेट चड़कर आंसु बहाते किसान और सिसकती उपजाऊ माटी को किसी ने नहीं देखा। जिस जंगल सफारी को पूरी दुनिया ने मोदी जी के कैमरे से देखा है वें हकीकत से भी वाकिफ हो कि इसे गांव और शहर के बीच में बसाया गया है। और शहर में जंगल कैसे, किन परिस्थितियों में बस सकता इसकी कल्पना कीजिए। 
जंगल सफारी की परिकल्पनाकर्ताओं ने भले ही रायपुर में विश्वस्तरीय मनोरंजन को जनहित से जोड़कर अपने सीने में एक और तमगा जड़ा लिये है किन्तु वह अब भी आधा अधूरा है। हाइटेक टिकटघर से टिकट लेकर जंगल सफारी पहुंचते ही भव्य प्रवेशद्वार, मिनी उद्यान, बैट्री चलित टैक्सी। जंगल भ्रमण के लिए वातानुकूलित तथा गैर वातानुकूलित सुरक्षित यात्री बस। अप्रशिक्षित गाइड के पोस्ट पर काम करते प्रभावित गांव के किसान का बेटा टाइगर सफारी, बियर सफारी, हर्बीवोर, लायन सफारी से लेकर खंडवा जलाशय दिखाता है। गांव का गाइड भोलेपन में कई ऐसी भी बातें कह देता है जो उनकी नौकरी के लिए खतरा है, वह भी बेचारा क्या करे आखिर है तो अप्रशिक्षित। उस गाइड की मासूमियत देखिये जो कहता है-'ये देखिये सर जंगल सफारी का मासूम जंगली जानवर जो नंदनवन से लाया गया है। जगह-जगह इनके पानी पीने के लिये तालाब बनाये गये है जो पहले कभी हराभरा खेत-खलिहान हुआ करता था।' आगे कहता है 'इस बांध को देखिये सर ये नेस्टिंग आइलैण्ड, जो पहले था तो हमारे गांव का किन्तु अब हमें यहा नहाने-धोने तो दूर घुसने तक नहीं दिया जाता है।' जंगल सफारी देखते पर्यटकों का मन भरता हो ऐसा भी नहीं है। पिंजरे में कैद खूंखार जानवरों सा बंद बस में बैठेे यात्री असंतुष्ट मन से 45-55 मिनट भ्रमण करता है। यात्री से पूरे पैसे लेकर आधा-अधूरा दिखाने का ताना बेचारे स्थानीय ग्रामीण गाइड सुनते है। विभाग कार्य अवधी का हवाला देकर पल्ला झाड़ते है। जंगल सफारी के नाम पर सैलानियों के अलावा जू का जानवर भी ठगा महसूस करते है। सही मायने में कहा जाए तो घुम फिरकर नाम बड़े दर्शन छोटे वाली बात मुक जानवरों के चेहरों से भी झलकते है। कहने को जानवर आजाद है लेकिन उन्हे तो नंदनवन जितना भी सुकून नहीं है। असिमित, असमय प्रतिदिन पहुंच रहे पर्यटक अव्यवस्था के लिये खूंखार होकर मासूम जानवरों को कोसने लगते है। विभागीय अव्यवस्था और जल्दबाजी में कही ऐसा न हो की कुछ दिनों बाद वे किसी फ्लाप शो की तरह दर्शक को तरसे!

सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ का कतरन


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