छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता के पुरोधा जागेश्वर प्रसाद द्वारा लिखित निबंध संग्रह ‘हीरा छत्तीसगढ़’ का हुआ विमोचन


छत्तीसगढ़ राज्य, छत्तीसगढ़ी राजभाषा निर्माण के प्रमुख आंदोलनकारी एवं छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता के पुरोधा जागेश्वर प्रसाद जी द्वारा रचित निबंध संग्रह ‘हीरा छत्तीसगढ़’ का विमोचन उनके 76 वें जन्मदिन के अवसर पर आज आनंद समाज वाचनालय सभागार में किया गया। विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. शिवकुमार पांडेय, अध्यक्षता किए वरिष्ठ कवि, गीतकार रामेश्वर वैष्णव तथा विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ संस्कृति कर्मी अशोक तिवारी जी उपस्थित थे।

इस अवसर पर मां शारदा के छायाचित्र में माल्यार्पण कर कार्यक्रम संचालक डॉ. देवधर दास महंत द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रमुख आंदोलनकारी एवं छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता के पुरोधा जागेश्वर प्रसाद को 76 वें जन्मदिन की बधाई देते हुए अतिथियों के करकमलों द्वारा ‘हीरा छत्तीसगढ़’ का विमोचन कराया गया। महाकवि रविन्द्र नाथ टैगोर जी से प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ राज्य के अनमोल हीरा जागेश्वर प्रसाद जी द्वारा लि‍खित 23 निबंधों के संग्रह में टैगोर जी की कृति ‘आमार सोनार बांगला’ की तरह ही छत्तीसगढि़या समाज को जागृत करने वाले संदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ के 16 विभूतियों की जीवन परिचय का भी सामवेश किया गया है। 


विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. शिवकुमार पांडेय ने इस अवसर पर जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा कि ‘हीरा छत्तीसगढ़’ के लेखक जागेश्वर जी स्वयं छत्तीसगढ़ के लिए अनमोल हीरा हैं। इस प्रदेश में साहित्य को लेकर बहुत बड़ा काम हुआ है, लेकिन ये हमारी विडंबना रही कि राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं मिल पाया। छत्तीसगढ़ में ऐसे अनमोल रत्नों का भंडार है जिसे तरासने की जरूरत है। रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में एम.ए. कराया जा रहा है, जो भाषा के विकास के लिए एक बड़ा काम है, इसे और आगे बढ़ाना युवा पीढी की जिम्मेदारी है। 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ संस्कृति कर्मी अशोक तिवारी जी ने कहा कि 50 वर्षों से संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रहा हूं और इस दौरान भारत के कई राज्यों की संस्कृति को जानने का मौका मिला है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में कहा जाए तो यहां अलग राज्य बनने के बाद भी भाषा और संस्कृति को लेकर कोई ठोस कार्य प्रदेश सरकार द्वारा नहीं किया गया है। सन् 1875 के आसपास असम में बसे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हमसे बेहतर अपनी संस्कृति को सहेजने का कार्य कर रहे हैं। वें मीलों दूर असम में बसे होने के बावजूद छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बचाने के लिए निरंतर बैठक, विचार संगोष्ठी आदि करते रहते हैं। प्रदेश सरकार में नेता और मंत्री भले ही छत्तीसगढि़या है लेकिन जो लोग इस राज्य को चला रहे हैं उन्हे यहां की संस्कृति और भाषा से कोई सरोकार नहीं है। अफसरों की यही सोच छत्तीसगढ़ की संस्कृति की दुर्गति का कारण है।


इस अवसर पर ‘हीरा छत्तीसगढ़’ के लेखक जागेश्वर प्रसाद जी ने अपनी कृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी बोलने मात्र से ही भाषा की सेवा नहीं हो जाती, उसके लिए तड़प होनी चाहिए। आज प्रदेश के मुखिया छत्तीसगढ़ की पृष्ठ भूमि से है लेकिन वें भी अपनी मूल से हटकर, तीज-त्योहारों में संस्कृति को समेट रहे हैं। जबकि पहली प्राथमिकता छत्तीसगढ़ी भाषा का राजकाम में उपयोग करना और प्राथमिक कक्षा तक पढ़ाई कराने की होनी चाहिए, जो अब तक नहीं हो रहा है। पढा़ई के माध्यम और आठवीं अनुसूची के लिए अभी और लड़ाई लड़ने की जरूरत है साथ ही हमें छत्तीसगढि़या मुख्यंमंत्री को भी छत्तीसगढ़ी भाषा में काम करने के लिए बाध्य करना होगा। कार्यक्रम में आगे आभार व्यक्तव्य में देते हुए प्रदेश के वरिष्ठ कवि, गीतकार रामेश्वर वैष्णव ने कहा कि वतर्मान मुख्यमंत्री से बहुत ही ज्यादा आपेक्षा है। कला-साहित्य-संस्कृति की समझ के साथ ही वें छत्तीसगढ़ के राजगीत के रचयिता डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। श्री वैष्णव कहते है कि राजकाज, पढ़ाई और आठवीं अनुसूची से भी ज्यादा जरूरी काम भाषा का मानकीकरण है। छत्तीसगढ़ी लेखन में एकरूपता नहीं है, लेखक अपनी-अपनी आंचलिकता के प्रभाव में शब्दों को विकृत ढंग से लिख रहे हैं। यदि राजभाषा को समृद्ध करना है तो मानक शब्दावली जरूरी है। 


जागेश्वर प्रसाद जी द्वारा रचित निबंध संग्रह ‘हीरा छत्तीसगढ़’ के विमोचन के अवसर पर साहित्यकार डॉ. पंचराम सोनी, रामेश्वर शर्मा, चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, गोविंद धनगर, डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर, मन्नूलाल यदु, विमल कुर्रे, काविश हैदरी, देवेन्द्र कश्यप, सुश्री ममता अहार, डॉ. आर. डी. मानिक, अशोक कश्यप, डॉ. रामलाल वर्मा, रमेश दानी, इंद्रदेव यदु, बंधु राजेश्वर राव खरे, डॉ. सुखदेव राम साहू, डॉ. मुक्ति बैस, इंजी. अशोक ताम्रकार, अनिल दुबे, शीलकांत पाठक एवं डॉ. अर्चना पाठक सहित अन्य कलाकार, गीतकार व बुद्धिजीविगण शामिल थे।

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