इस सत्र भी नहीं प्रवेशोत्सव, कोरोना के ग्रहण से सूना शाला प्रांगण


छत्तीसगढ़ में 16 जून से शुरू होने वाले शाला प्रवेशोत्सव कार्यक्रमों की कुछ वर्ष पूर्व अलग ही रौनक हुआ करता था। स्कूलों में साफ-सफाई और नये रंगत के साथ नव प्रवेशी बच्चों के स्वागत के लिये सभी अध्यापकगणों के साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधी भी शाला प्रवेशोत्सव में भाग लेते थे। 16 जून के दिन जनप्रतिनिधी में पंच और पार्षद से लेकर मुख्यमंत्री और कलेक्टर आदि भी किसी न किसी स्कूल में बच्चों को तिलक करने पहुंचते थे। टन-टन की घंटी के साथ स्कूल की ओर दौड़ते पुराने बच्चें, अभिभावक की गोद से रोते-रोते उतरकर धीरे से अध्यापक की उंगली पकड़ना, कभी स्कूल तो कभी पालक को देखते नन्हे नव-प्रवेशी विद्यार्थी। राष्ट्रगान और वंदना के बाद भारत माता की जयघोष के बाद प्रधान पाठक का शुभकामना संदेश सत्र के अंत तक अध्यापक और बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करता था। लेकिन इन सब के लिये तरस रहा है शाला प्रांगण, कोरोना के ग्रहण ने बच्चों का बहुत कुछ छिन लिया।  

मार्च और अप्रैल माह में सत्रावसान की तैयारी, परीक्षा के बाद परिणाम और फिर नये सत्र की धमक से शाला प्रांगण कभी गुलजार हुआ करता था, जो अब शांत है। न स्कूल की घंटी और न ही पढ़ाई की फिक्र, ऑनलाइन मोबाइल से पठन-पाठन के साथ अंत में बिना इम्तिहान के ही परिणाम शत-प्रतिशत उत्तीर्ण। यह अजब दिन कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से देख रहे हैं। जानलेवा बीमारी है कारण, तो किसी को दोष भी नहीं दे सकते। आपके और हमारे मन में उठते सभी प्रश्नों का एक ही हल, कोरोना काल।

कोरोना से लोगों की जाने जा रही है इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता, मौत की आकड़े भयानक है। जीवन रहा तो शिक्षा कभी भी ग्रहण की जा सकती है इस सोच के साथ समाज ने नये सत्र की शिक्षा नीति को स्वीकारा है। पिछली सत्र की बात करे तो कोरोना के शुरूआती दौर में छत्तीसगढ़ में पढ़ाई तो लगभग पूर्ण हो चुका था। बच्चे साल भर कक्षा में अध्ययन किये थे लेकिन कोरोना महामारी के कारण परीक्षा लेने की स्थिति नहीं थी और सत्र बर्बाद न हो इसलिये बच्चों को जनरल प्रमोशन से अगली कक्षा में प्रमोट करा दी गई। अगले नये सत्र में स्कूल खुलने की संभावनाओं पर कोरोना ने फिर ग्रहण लगा दिया। इस बीच शासन ने ऑनलाइन का रास्ता निकाला, जो अब काफी चिंता जनक लग रहा है। भविष्य में इसका दुष्परिणाम भी आयेगा। ऑनलाइन कक्षा में पढ़ाई की गुणवत्ता, बच्चों में विषयवस्तु की समझ, शारीरिक और मानसिक विकास ऑफलाइन के कक्षा अध्ययन की तुलना में महज खानापूर्ती ही साबित हो रहा है। बच्चों और अध्यापक के साथ अभिभावक भी मोबाइल लेकर चिपके रहते हैं। आजकल-आजकल करते वो सत्र भी बिना परीक्षा के ही जनरल प्रमोशन में निकल गया।

कोरोनाकाल में जो बच्चा पहली कक्षा में था आज उनका नाम तीसरी में चल रहा है। कुछ बच्चे और अभिभावक को तो शायद यह भी पता नहीं होगा की उनके बच्चे कानाम किस कक्षा में है। पहली से तीसरी में पहुंच चुके बच्चों को कितना पाठ का ज्ञान हुआ इस पर कुछ कहें तो जवाब में कोरोना आयेगा, ऐसे में चुपचाप बच्चों की डिग्री बढ़ाते रहे इसी में सबका भला है। संकट के बीच निजी और सरकारी शिक्षण संस्थान की बात करें तो एक तरफ सरकारी स्कूल का अध्यापक शान से पूरी तनख्वाह ले रहा है, वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों में मारा-मारी के बीच अध्यापकों को तनख्वाह के लाले पड़ रहे है। 

कक्षाएं छोटी है तो समस्या भी छोटी है। यहां तो बोर्ड कक्षा और कॉलेज का और भी बुरा हाल है। जिस पर युवाओं का भविष्य टिका है वही डाँवाडोल हो रहा है। खानापूर्ती कहे या मजबूरी मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी ऑनलाइन ही लग पायी। जिनका स्वयं का भविष्य ऑनलाइन में बना हो वे सब कुछ सामान्य होने के बाद किस प्रकार आम लोगों की सेवा में ऑफलाइन काम कर पायेगा यह भी चिन्ता का विषय होगा!  
- जयंत साहू, रायपुर [98267-53304]


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