बाल यौन अपराध संरक्षण (पोस्को) अधिनियम

यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण(पोक्सो) अधिनियम, 2012 अठारह साल से कम आयु के व्यक्तियों, जिनको बालक के रूप में समझा जाता है, के विरूद्ध यौन अपराधों से निपटता है। इस अधिनियम में पहली बार ‘यौन प्रहार’ एवं ‘यौन हमला’ को परिभाषित किया है। यदि किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, रिमांड गृह, संरक्षण या प्रेक्षण गृह, जेल, अस्पताल या शैक्षिक संस्था में स्टाफ के किसी सदस्य द्वारा या सशस्त्र अथवा सुरक्षा बलों के किसी सदस्य द्वारा यह अपराध किया जाता है तो उसे और गंभीर माना जाता है।
इसके तहत बनाई गई नियमावली के साथ ही यह अधिनियम 14 नंवबर, 2012 को लागू हुआ है। यह अधिनियम यौन हमला, यौन उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य के अपराधों से बच्चों की रक्षा का प्रावधान करने के लिए एक व्यापक कानून है, जबकि लोक अभियोजकों तथा नामोंद्दिष्ट विशेष न्यायालयों की नियुक्ति के माध्यम से अपराधों की रिपोर्टिंग, साक्ष्य की रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं त्वरित सनुवाई के लिए बालोनुकूल तंत्रों को शामिल करके हर चरण पर न्यायिक प्रक्रिया में बच्चों के हितों की रक्षा की गई है। अधिनियम में अपराधों की रिपोर्टिंग, रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं सुनवाई के लिए बालोनुकूल प्रक्रियाएं शामिल की गई हैं। अधिनियम में ऐसे अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान है जिन्हें अपराध की गंभीरता के अनुसार श्रेणीबद्द किया गया है।
पोक्सो अधिनियम की धारा 39 के तहत राज्य सरकारों से बच्चों की मदद के लिए सुनवाई पूर्व एवं सुनवाई चरण के साथ संबद्ध करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, पेशेवरों एवं विशेषज्ञों या व्यक्तियों के प्रयोग के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की अपेक्षा है। अनेक राज्य सरकारों के अनुरोध पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा मॉ़डल दिशानिर्देश तैयार किए गए तथा सितंबर, 2013 में सभी राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों को भेजे गए जिन्हें उक्त अधिनियम के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उके द्वारा अपनाया या अनुकूलित किया जा सकता है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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