न दवा न उपचार, सलाह के दम पर जीतेंगे कोरोना की लड़ाई



कोरोना के दौर में उपजे संकट के बीच, लोग यह भी कह रहे हैं कि इसने आम आदमी के दिमाग को भी भारी नुकसान पहुंचाया है, और इन खराब दिमाग वालों में ऐसे व्यक्तियों की अधिकता है जो दूसरों की भविष्य को लेकर काफी चिंता जताते हैं। संकट की घड़ी में दिमाग खराब कर देने वाले बेमतलब के सलाह को ही समाधान समझकर वें दूसरों को थोप रहे हैं। इस बीच कोरोना से जूझते निम्न और मध्यमवर्गीय लोग बेफजूल के बकबक करने वालों का मुंह बंद नहीं करा सकते क्योंकि ये लोग सत्ता और सियासत गर्द है।

चीन से निकलकर कोरोना वायरस ने दुनिया भर में अपना ठिकाना बनाया और करोड़ों को संक्रमित कर लाखों की जाने ले ली। इस बीच वहीं देश कोरोना से लड़ सका जिनके पास जरूरी संसाधनों के साथ ईमानदारी से काम करने का जस्बा था। लेकिन कुछ देश ऐसे भी निकले जो सलाह के अलावा कुछ और न दे सकी। सबसे ज्यादा सलाह देने वाले देशों में भारत अब भी प्रथम पायदान पर दिख रहा है। महामारी के दूसरे साल में भी आम जनता तक सिर्फ सलाह ही पहुंच रहा है, एक प्रकार से कहा जाए तो कोरोना से लड़ने के लिए भारत के पास सबसे बड़ा हथियार है सलाह। न दवा न उपचार, सलाह के दम पर जीतेंगे कोरोना की लड़ाई। 

यहां एक व्यक्ति ही सलाह नहीं दे रहा है बल्कि सलाहकारों की प्रशिक्षित सेना है। केन्द्र सरकार का सलाह, राज्य सरकार का सलाह, और फिर जिलाधीशों का सलाह। सोचिए इतनी सलाहों का बहुत बड़ा डोस जनता को मिलता है तो कोरोना वायरस का क्या हाल होता होगा। ये पैतरे दूसरे देशों को भी अपनानी चाहिए खास कर ऐसे देश जो भारत को ऑक्सीजन, दवाई, वेंटिलेटर सहित अनेक स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ टीका भी भेज रहे हैं। बदले में हमारा देश भी उनको सलाह देना चाहते है लेकिन उनको स्वीकार नहीं इसलिए टीका, दवाई और स्वास्थ्य संसाधन देकर सम्प्रभुता जतानी होती है।

बस कब किसे और कैसे देनी होती है इसमें थोड़ी चूक हो कई शायद। महामारी रोकने के लिये भारत में 24 मार्च 2020 को 21 दिन का लॉकडाउन लगा। इसे चरणबद्ध आगे बढ़ाते हुए सरकार ने दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें करते अब 2021 का जून आ गया है। अब स्थिति क्या है देश की ये दुनिया के साथ हम भी देख रहे हैं। लॉकडाउन में कोरोना से कही ज्यादा अन्य त्रासदी ने लोगों की जाने ली। अर्थव्यवस्था चर्मराने लगी तो चरणबद्ध तरीकों से खोला गया बाजार। फिर देश के लिए जो सबसे जरूरी नियम कानून थे उसे लागू कराया गया। अनेक राज्यों में चुनाव भी कराये गये। शानदार तरीके से कई राज्यों में क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय मैच भी संपन्न हुआ। 

देश का भविष्य बर्बाद न हो इस वजह से शिक्षा व्यवस्था को हासिये पर रखते हुए सलाहकारों ने थोड़ी कंजूसी जरूर कर दी। बिना किसी इम्तिहान के अगली कक्षा में अच्छे नंबरों के साथ उन्मोचित किया गया। देश के कर्णधारों को शानदार दूसरे वर्ष भी पास होने की बड़ी उपलब्धी प्राप्त हुई। प्ले स्कूल से लेकर व्यवसायिक पाठ्यक्रम और उच्च शिक्षा में भी गहन चिंतन के बाद सलाहकारों की रणनीति इस नतीजे पर पहुंचती है कि हम बच्चों की जान को जोखिम में नहीं डाल सकते है। डिग्री से भविष्य सवंरता है इसलिये दे दी जाए डिग्रियां। शायद ये सलाहकार एक और चूक कर गये चुनाव के दौरान। अगर वहां भी बिना किसी चुनावी रैली, जनसभा और मतदान के यूं ही उम्मीदवारों को जीत दे देते तो उन राज्यों में फजीहत नहीं होती। अब तक जिस अंदाज से सलाहकारों ने देश को चलाया है इतिहास वर्षों तक याद रखेगा। हो न हो कल तक यदि सब कुछ ठीक रहा तो सलाह मात्र से महामारी नियंत्रण के फार्मूले को प्रामाणिकता मिलेगी और यह एक नई चिकित्सा पद्धति के रूप में दुनिया भर में पहचान कायम करेगा।
- जयंत साहू, रायपुर मो. 98267-53304



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