इन दिनों छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों से जुड़ी खाद सब्सिडी और नि:शुल्क अतिरिक्त राशन देने की घोषणा को महीना बीतने को है लेकिन आम जनता को एक बड़े षडयंत्र के तहत लाभ नहीं दिया जा रहा है। जिम्मेदार अफसर खुद इस बात को स्वीकार रहे हैं कि दोनों ही मामलों में घोषणा हुआ है। किन्तु लाभ देने की बात आदेश में आकर खत्म हो जाता है।
किसान मानसून के पूर्व ही खाद, बीज की तैयारियों में जुटा है और सरकार इस महामारी के दौर में उनको राहत देने के बजाए खाद की कीमत बढ़ाकर और मुसीबत खड़ी कर रहा है। जो खाद 1200 रूपये का था उसका 1900 रूपये और 850 रूपये का था उसको 1000 रूपये कीमत में किसानों को दिया जा रहा है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के खाद गोदाम से किसानों को बढ़ी हुई कीमत पर ही खाद उठाने को कहा जा रहा है।
किसानों ने जब उच्च अधिकारी तक अपनी बात रखी तो उनका जवाब भी आदेश न आना ही था। किसानों की समस्या पर वे इतना ही कह रहे हैं कि जब आदेश आयेगा तो उनकी खाद की कीमत को सब्सिडी काट कर वसूला जायेगा। 50 प्रतिशत किसान खाद का उठाव कर चुके हैं। उनके मन में डर बना हुआ है कि आदेश होगा भी या नहीं, और होगा तो कितना सब्सिडी मिलेगा। जिस गति से केन्द्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की बात जनता तक पहुंची है..., अब आदेश करने में ढोल का पोल दिखाई दे रहा है।
यही हाल कोरोना के लॉकडाउन में फंसे गरीब, मजदूरों का राशन के मामले में हो रहा है। केंद्र सरकार ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के अन्तर्गत आगामी दो महीने तक गरीबों को नि:शुल्क अनाज उपलब्ध कराने की घोषणा किये हैं। इस योजना के तहत इस वर्ष मई और जून माह में प्रत्येक व्यक्ति पांच किलोग्राम खाद्यान्न दिया जाएगा। साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा मई-जून में लाभार्थियों को नि:शुल्क अनाज के अलावा ऐसे परिवार जिसमें 5 से अधिक सदस्य है को प्रति व्यक्ति 3 किलो अतिरिक्त अनाज देने का प्रावधान किया गया है।
हद तो तब हो गई जब हितग्राहियों को मई और जून माह का 35-35 किलो चावल देकर ही चलता कर दिया गया। सवाल पूछने पर वें जवाब ऐसे देते है मानो अपने घर का अनाज दे रहा हो..., नेता जी के जुबान से फिसलते ही हवा कि गति से आम जनता तक पहुचंने वाली घोषणाओं का आदेश महीनों तक कहां अटका है, आखिर जवाबदेही किसकी बनती है?
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