निजी स्कूल शिक्षक कैसे मनाये दिवाली? स्कूल, ट्यूशन बंद

निजी स्कूल शिक्षक

कोरोना संक्रमण के कारण होली से दीवाली तक की छुट्टी ने सबसे ज्यादा निजी स्कूल के शिक्षकों की हालत खराब कर दी है। कहते हैं कि कोविड-19 वायरस से मुंह का स्वाद चला जाता है। यहां तो मुंह में निवाला ही नहीं जा रहा है तो स्वाद का सवाल ही नहीं उठता। मार्च से नवंबर तक न जाने कितने त्योहार यूं ही निकल गया। आज भी लोग दिवाली मनाने के लिए उत्साहित है, खरीददारी कर रहे हैं, ऐसे में निजी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षक सहित अन्य स्टाफ गरीबी नामक भयंकर वायरस के संक्रमण से जंग लड़ रहे है। 

भला कैसे मनाये निजी स्कूल शिक्षक दिवाली? स्कूल, ट्यूशन बंद। एक तरफ पालक गरिया रहा है तो दूसरी तरफ प्रशासन की बेड़ियां और स्कूल प्रबंधन की मजबूरियां। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल से मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में शासकीय स्कूल से भी ज्यादा योग्य, काबिल और मेहनती शिक्षक नौकरी करते हैं। निजी स्कूल के शिक्षक की योग्यता और काबिलियत पर इसलिए भी आपको भरोसा करना होगा क्योंकि तमाम शासकीय नौकरी पेशे अधिकारी-कर्मचारियों की संतानें निजी स्कूलों में पढ़ते हैं।

यहां तक की शासकीय स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक भी अपने बच्चों को निजी स्कूंल में पढ़ाते है। अब तो आप निजी स्कूल के शिक्षक की योग्यता पर सवाल नहीं उठा सकते। विषम परिस्थिति में कही नौकरी न चला जाए इस डर से कोरोना काल में भी काम करते रहे। जिसका पैसा अब तक नहीं मिला। आपको तो लॉकडाउन से कोई फर्क नहीं पड़ा, आपके खाते में बराबर पैसा आता रहा। फिर भी क्यों आप निजी स्कूल शिक्षक, प्राइवेट ट्यूशन टीचर के बारे में नहीं सोचते।  

सभी निजी स्कूल शिक्षकों का एक ही दर्द है कि बेरोजगारी की मार झेलते प्राइवेट जॉब से ही गुजारा चला रहे थे अब वह भी नहीं रहा। प्रशासन और पालक स्कूल प्रबंधन पर थोप रहे है कि क्या अपने स्टाफ को वे बैठे-बैठे तनखा नहीं दे सकते। आखिर प्रबंधन भी कहां से पैसा दे, उनको फीस आने पर ही तो स्टाफ को देगा। कुछ पालक तो पिछले वर्ष का पूरा शुल्क भी नहीं देना चाहते क्योकि स्कूल में परीक्षा हुई ही नहीं। कोरोना के संक्रमण के फैलाव से कहीं ज्यादा पालकों के दबाव ने निजी स्कूलों की कमर तोड़ दी, परिणाम यह हुआ की शिक्षक सहित अन्य स्टाफ बेरोजगार हो गये। आज स्थिति ऐसी है की भूखों मरने की नौबत आ चुकी है, कोई सुध लेने वाला भी नहीं है। 

निजी स्कूल शिक्षकों की परवाह न करने वाले पालक ये भली भांति जानते है कि उन्होने अपने हैसियत और सुविधा के अनुसार स्वयं ही प्राइवेट स्कूल चुना है। अपने स्टेटस और आधुनिक शिक्षा सुविधा के लिए निजी स्कूल का चुनाव करने के बाद प्रबंधन को फीस के लिये रूलाना कतई शोभा नहीं देता। फीस आपके पहुंच की होती है, पूर्व से आपको जानकारी रहती है फिर भी जेब में डाका कहा जाता है। बहरहाल यह तो पालक और प्रबंधक के बीच की बात है जिसमें नाहक ही शिक्षक पीस जाता है।

आज जब आठ माह बाद सभी का कुछ न कुछ शुरू हो चुका है ऐसे में निजी स्कूल और वहां काम करने वाले शिक्षक सहित अन्य स्टाफ के विषय में भी मानवता के नाते विचार किया जाना चाहिए। जिस भी माध्यम से पालक निजी स्कूल शिक्षकों की मदद कर सके तो जरूर करें। सरकार भी स्कूलों को कोविड-19 गाइड लाइन के साथ खोलने की अनुमति दे जिससे प्राइवेट स्कूलों में काम करने वालों का जीवन चल सके। 
- जयंत साहू, रायपुर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

POPULAR POSTS