रेत में मुरूम के सड़क से नदी को खतरा


देश में पांचवे कुंभ के रूप में अस्तित्व में आया राजिम, प्रतिवर्ष लगने वाला कुंभ और कल्प की उपाधि पाने के बाद चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या कुंभ प्रतिवर्ष लगना चाहिए, कोई सरकार कैसे कुंभ का सर्जक हो सकता है? ऐसे तमाम विषयों पर पुरातत्ववेत्ता, धर्मगुरू और मठाधीशों में एक मत नहीं है। आश्चर्य है फिर भी किसी ने मुखर होकर राजिम कुंभ का विरोध नहीं किया। और जो सहमत है वें सही तर्क नहीं दे पाये कि किन-किन मापदंडों को पूर्ण करने के उपरांत राजिम के मेले को कुंभ की उपाधि दी गई है। बहरहाल राजिम में प्रतिवर्ष कुंभ (कल्प) का आयोजन भव्य तरीके से किया जा रहा है। 



राजिम नगर में अरपा, पैरी और सोढ़ूर नदी का संगम है और यहीं से छत्तीसगढ़ की जीवनादायनी महानदी अपने पूर्ण स्वरूप में आकर आगे बढ़ती है। राजिम की इसी महानदी पर सैकड़ों वर्ष पूर्व से माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक भव्य मेला भरता आया है बिना किसी दिखावे के। किन्तु जब से कुंभ बना है राजिम में आस्था कम और आडंबर ज्यादा हो रहा है। बाहर से साधुओं को पैसे देकर बुलाना, मनोरंजन के लिये विशाल सांस्कृतिक मंच, धार्मिक पंडाल पर राजनैतिक समागम कराना, सरकारी तंत्र का जम कर दोहन करना आदि कुंभ की नई पहचान बन गई है। इससे भी बड़ी विडंबना देखिए की जिस त्रिवेणी संगम पर कुंभ का आयोजन हो रहा है वहीं नदी में प्रत्येक वर्ष हजारों ट्रैक्टर मुरूम और लाल मिट्टी डालकर अस्थाई सड़क बनाया जाता है। महानदी के भीतर मेले में दर्शनार्थियों के ठहरने के लिये भव्य पंडाल बनाया जाता है। पंद्रह दिनों तक मेले के दौरान खाद्य पदार्थो के अवशेष, प्लास्टिक की थैलियां, पानी की बोतले आदि नदी फेकी जाती है। मेले के बाद हॉट व पंडालों से सामान हटाने के बाद गैर उपयोगी सामानों को नदी में ही छोड़ दी जाती है।   



नदी में मुरूम या लाल मिट्टी डालना कितना खतरनाक हो सकता है पर्यावरण के लिये यह जानते हुये भी कुंभ के नाम पर प्रशासन सरकारी धन का दुरूपयोग करते हुये सड़क बनवाती है। नदी में अस्थाई सड़कों का निर्माण करने के लिये बाकायदा लोक निर्माण विभाग द्वारा निविदा आमंत्रित कराई जाती है और फिर ठेकेदारों द्वारा नदी के भीतर ही सड़कों का जाल बिछाया जाता है। इस तरह प्रत्येक वर्ष प्रशासन नदी में हजारों ट्रैक्टर मुरूम डाल रही है। एक तरफ तो प्रशासन स्वयं नदी-नालों को बचाने के लिये कई योजनाये चला रही है और दूसरी ओर महानदी में लाल मिट्टी डाल कर उसका दम घोट रही है।



कुंभ के आयोजन को पूरी दुनियां भी सोशल मीडिया के माध्यम से देख रही है। फिर भी नदी बचाओ मुहिम चलाने वाली कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थान राजिम कुंभ और महानदी को लेकर मौन है। सरकारी तंत्र की बात करे तो राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जो कि हिन्दु और हिन्दुत्व की बातें करते हैं, गाय और नदी को मां का दर्जा देते हैं। तो फिर राजिम में नदी को मार कर कुंभ को भव्यता देना क्यों चाहती ये सरकार? नदी के बिना कैसा कुंभ और क्या कल्प होगा!


देश के अन्य चारों कुंभों की बात की जाये तो नदी में लोग दूर-दूर से स्नान कर पुण्य लाभ पाने की चाहत लेकर जाते है। ऐसी मान्यता है कि वहां पर अमृत गिरा था, देश-विदेश के साधु-संत भी बिना किसी बुलावे के स्वयं कुंभ का सुफल पाने जाते हैं। लेकिन राजिम के कुंभ में ऐसा नहीं होता है यहा शासन-प्रशासन स्तर पर साधु-संतों को सरकारी धन खर्च कर बुलावा भेजा जाता है साथ ही उनकों तमाम तरह की सुविधाए दी जाती है। जिनमें से एक नदी तक उनको लग्जरी कार में लाना ले जाना भी शामिल है। एक तरह से देखा जाये तो नदी के भीतर जो मुरूम से अस्थाई सड़क बनाये जाते है उनका उपयोग संतों और नेताओं के साथ अफसर ही करते है। अपनी-अपनी पदों की नाम पट्टिका लगाये नदी में चार पहिया वाहन फर्राटे से दौड़ते हैं जबकि आमजनों को दो पहिया वाहन तक ले जाने नहीं दी जाती है।



कुंभ के नाम पर इस तरह की नदी के अस्मिता से खिलवाड़ नहीं होनी चाहिए। राजिम मेले को कुंभ का नाम दे दिया गया वह तो स्वीकार है किन्तु नदी की अस्तित्व के लिये जो खतरा बन रहा उनका तो विरोध होना चाहिए। महानदी न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि उड़िसा राज्य की भी जीवनदायनी है ऐसे में समय रहते नदी को बचाने के लिये आवाज मुखर होनी चाहिए तभी प्रशासन इस ओर ध्यान देंगे।
- जयंत साहू, रायपुर
9826753304




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