कमरछठ विशेष-: जयंत साहू
छत्तीसगढ़ में माताएं अपने संतानों की दीर्घायु तथा सुखमय जीवन की कामना के लिए कठिन व्रत रखती है जिसे कमरछठ कहा जाता है। इसे कमरछठ के अलावा हलषष्ठी, खमरछठ, हलछठ आदि नामों से भी जाना जाता है। कमरछठ का व्रत माताएं भाद्रपद मास में कृष्णपक्ष की छठी तिथि को रखती है। व्रत के दौरान गांव की सभी महिलाएं एकत्रित होकर किसी एक स्थान पर सगरी (जलाशय का प्रतिरूप) बनाती और उसके किनारे को काशी व अन्य पुष्पों से सजाया जाता है। सगरी के पास ही भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजा किया जाता है।
सगरी के पास ही बैठकर माताएं कथा सुनती है, सगरी की परिक्रमा करती है और अपने-अपने संतानों की सुखमय जीवन की कामना करती हुई सगरी में जल अर्पण करती है। 'कमरछठ' व्रत में फलाहार के रूप में ऐसे भोजन और साग-सब्जी का उपयोग किया जाता हैं, जिसे हल आदि के द्वारा न बोया गया हो, अर्थात प्राकृतिक रूप से उत्पन्न वस्तुओं को ही ग्रहण करती हैं। जिसमें पसहर चावल के अलावा के साथ छ: प्रकार के अन्न- धान की लाई, भुना हुआ चना तथा महुआ, गेहूँ, अरहर व छ: प्रकार की भाजी (मुनगा, कद्दु, सेमी, तोरई, करेला, मिर्च), भैंस की दूध-दही आदि को महुआ पत्ते के दोना और पत्तल में भरकर भोग लगाया जाता है व ग्रहण किया जाता है।कमरछठ की 10 विशेष बातें -:
1. यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। माताएं संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायु सुखमय जीवन की कामना रखकर को रखती है।2. इस दिन माताएं सगरी बनाकर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं और उनके पुत्र के समान ही श्रेष्ठ पुत्र की कामना करती हैं।3. इस दिन फलाहार के रूप में ऐसे भोजन और साग-सब्जी का उपयोग करती हैं, जिसे हल आदि के द्वारा न बोया गया हो, अर्थात प्राकृतिक रूप से उत्पन्न वस्तुओं को ही ग्रहण करती हैं। जिसमें पसहर चावल आदि शामिल होते हैं।4. इस पूजन की सामग्री मे पसहर चावल, महुआ के पत्ते में धान की लाई, भैस के दुध दही व घी आदि रखते है।5. सगरी में बच्चों के खिलौनों जैसे भौरा बाटी आदि भी रखा जाता है साथ ही हरेली में बच्चों के चढ़ने के लिए बनाया जाता है को भी सगरी में रखकर पूजा करते है।6. सगरी के पास बैठ कर व्रत रखी हुई माताएं हलषष्ठी माता के छः कहानी को कथा के रूप में श्रवण करते है।7. 'कमरछठ' व्रत के बारे में अनेक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसमें से एक देवकी-वसुदेव की कथा है। वसुदेव और देवकी के बेटों को एक-एक कर कंस ने कारागार में मार डाला। जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो देवर्षि नारद जी ने देवकी को हलषष्ठी देवी के व्रत रखने की सलाह दिया। देवकी ने इस व्रत को सबसे पहले किया जिसके प्रभाव से उनके आने वाले संतान की रक्षा हुई।8. हलषष्ठी का पर्व भगवान कृष्ण व बलराम जी से भी संबंधित है। हल से कृषि कार्य किया जाता है। बलराम का प्रमुख हथियार भी है। बलदाऊ भैया कृषि कर्म को महत्व देते थे, वहीं भगवान कृष्ण गौ पालन को। इसलिए इस व्रत में हल से जुते हुए जगहों का कोई भी अन्न आदि व गौ माता के दुध दही घी आदि का उपयोग वर्जित है। उत्तर भारत में इसे हलधर बलराम जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है तथा दक्षिण में कुमार कार्तिकेय जयंती के रूप में मनाया जाता है।9. इस व्रत मे पूजन के बाद माताएँ अपने संतान के पीठ वाले भाग में कमर के पास पोता (कपड़ों का टुकड़ा जिसे हल्दी पानी से भिगोकर रखा जाता है) मारकर अपने आँचल से पोछती है जो कि माता के द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है।10. इस व्रत-पूजन में छः की संख्या का अधिक महत्व है। जैसे- भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का छठवाँ दिन, छः प्रकार का भाजी, छः प्रकार के खिलौना, छः प्रकार के अन्न वाला प्रसाद तथा छः कहानी/कथा।
संतान प्राप्ति व उनके दीर्घायु की कामना का व्रत 'कमरछठ' kamarchhat | हलषष्ठी
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