कड़ाके की सर्दी में भी मस्ती का पारा गरम




सताये, रोम-रोम ठिठुराते कड़ाके की सर्दी खूब
सुहाये, रात में अलाव और सबुह की गुनगुनी धूप
सुहाने, ऊनी कपड़ों के भीतर से लेलो मजा जनाब
सुलगते, सिगड़ी में उफनते चाय और गरमा-गरम सूप

कोहरों के गिरफ्त में आ सूरज
दिशा चिनहात न कोन है पूरब
दोपहर ही जानौ अब सबेरा
दिन ढल जात सबही अकारज


नल की टोंटी से झरता ओला
पोखरों ने बदला अपना चोला
पानी की न पूछ अब स्वरूप
वों पल में मासा, पल में तोला


समयचक्र का सुई धीरे-धीरे जाड़े की ओर जा रहा है। कहीं घनघोर कोहरा तो कहीं शीतलहर का आलम, लोगों को घरों में दुबकने को मजबूर कर दे रहा है। आलमारी से स्वेटर, मफलर और रजाई निकल चुके है। फ्रिजर की जगह गिजर आ गया। मेकअप बाक्स में भी गोल्ड क्रीम ने कब्जा जमा लिया है। लोग अपने-अपने तरीके से सभी बाकी ऋतुओं की तरह शीत का सामने करने को तैयार है। सुबह-सुबह घर पर आने वाले अखबारों को ज्यादा तवज्जों देने की जरूरत नहीं वर्ना ऋतुओं का आनंद नहीं ले पायेंगे। और ऋतुएं भी अपना पूर्ण प्रकोप दिखाये बगैर ही लौट जायेगी। दिल खोल कर शानदार तरीके से शीतकाल का स्वागत करने से वो भी हमें सेहत और तंदूरस्ती से भरपूर चार महीना देके जायेंगे। ठंड और रूखी त्वचा की चिंता छोड़कर सैर सपाटे के मूड में आइये। क्रिसमस डे, स्कूल में शीतकालीन छुट्टी और नव वर्ष का आगाज है ही सोने पे सुहागा ऑफर। अभयारण्य, पार्क, जूं, बाग-बगीचे, ताल-तलैया आदि आपके स्वागत को आतुर बाहे फैलाये खड़े है, तो चलिये प्रकृति के करीब इस कड़ाके की सर्दी में भी मस्ती का पारा गरम करें।


पर्यटन पाइंट-




जो विभिन्न पर्यटक स्थलों का आनंद नहीं ले पाये वे बहानों के पहाड़ बनाने से बाज नहीं आते। कुछ प्राकृतिक आपदाओं और हादसों के डर से बाहर न जा पाया, काम के वयस्तता से समय ही नहीं निकला, बस या ट्रेन का टिकट कंफर्म नहीं हो पाया, माली हालत ठीक नहीं है, परिवारिक उलझनों में फसा रहा इत्यादि कारणों के दरार पर क्रेक क्रीम लगाए और कड़ाके की सर्दी में लजीज व्यंजनों का लुफ्त उठाये। मन में किसी बात का मलाल नहीं होना चाहिए कि हम इस मौसम में कुछ नहीं कर पाये। मौसम के ऊपर दोष भी न मड़े। जीवन में बरसात, सर्दी, बहार और गरमी बूरे योग से नहीं मिलते बहरहाल से भी कुदरत की देन है। तन और मन को मौसम के अनुकूल ढालने में ही जीवन का असली आनंद है। फिरहाल आपके सेहत के लिये शीत ऋतु में परोसे जाने वाले थाली आ आनंद लीजिए।

लजीज व्यंजन

गर सौर-सपाटे और लजीज व्यंजनों से भी जी न भरे तो सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे ठिठुरते गरीब दीन-हीन लोगों को जी भरके निहारें। अनके पास मौसम की मार सहने के लिये क्या-क्या संसाधन इसकी भी एक सूची बनाये। काम की तलास में घर-द्वार छोड़ कर दूर देश में पलायन कर आये किसी गांव के बेरोजगार युवा को रेल्वे स्टेशन के बेंच में आराम से सोते देखें। फूटपाथ के डस्टबीन में से प्लास्टि की थैली और कचरे से आग चलाकर हाथ सेंकते हमाल और रिक्शचालक। किसी दुकान के बरामदे में सोये कोई मंदबुद्धि इंसान, भिख मांगने वाले गरीब, घर से निकाले गये बुजूर्ग जनों के अंग के कपड़ों को देखें। यदि इतना सब कुछ देखने के बाद यदि कड़ाके की काली रात में भी आपके तन-मन में आग न लगे, आपका जिया न धड़के, आंखे खुली न रह जाये तब तो वाकई ये मौसम क्रूर है। अब और आगे कुछ देखने की जरूरत नहीं सिर्फ अपने आपको हर परिस्थिति से जूझना सिखाये। हर ऋतु आपके अनुकूल होकर आनंद भर देगी जीवन में। 
खुले आसमां तले गुजार दी जिंदगी, कुछ बिरादरी वाले।
हम महलों के भीतर से कोसते रहे, सुख से जीने वाले।।

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जियो सिम के लिये फड़फड़ाते 2G, 3G एंड्रॉयड

ये भारत देश है साहब, यहां असंभव कुछ भी नहीं होता। भारतीय जितना जुगाड़ लगाते है शायद ही कोई और देश सोच पाता होगा। चूंकि हम पौराणिक लोगों के बीच पायरेसी कुछ भी नहीं है, तो फिर कॉपीराइट का सवाल ही नहीं। जुगाड़ोद्योग का मुकंदीलाल जो भी इजात करता है वो सबके लिये उपलब्ध होता है। जियो का भी तोड़ आयेगा माकूल समय आने दीजिए। अन्य टेलकॉम कंपनी यदि कोई तोड़ नहीं निकालेगा तो जुगाड़ोद्योग से आयेगा। डाटा पेक और मोबाइल मार्केट मौसम के अनुकूल अगाड़ी-पिछाड़ी दौड़ रही है कि अचानक रिलायंस ने 4 जी जियो सिम लॉच कर दिया। टोटल फ्री स्कीम ने सबकी हवा निकाल दी।


आजकल किसी के सोच से आगे की सोच रखने वाले लोगों में एक ही बात की होड़ मची है कि कौन सबसे पहले रिलायंस कंपनी के 4 जी जियो सिम का तोड़ निकालेगा। लोग अक्सर ये सवाल पूछते है कि जियो को 2 जी और 3 जी वाले एंड्रायड मोबाइल में कैसे चलाये? कॉलिंग और एसएमएस पैक से ज्यादा इंटरनेट डाटा हरेक के लिये जरूरी हो गया है। ऐसे में एंड्रॉयड फोन का जियो सिम के लिये तड़प लाजमी है।  
जो लोग नेट चला रहे है वे अपने हैडसेट पर सर्च करते नहीं थकते कि जियो कब से अन्य सभी एंड्रॉयड के लिये उपलब्ध होगा। क्या रिलायंस कोई ऐसा एप लांच करेगा जिससे जियो की पहुंच प्रत्येक हेंडसेट तक हो सके। फ्री कॉलिंग और एसएमएस को छोड़ों नेट डेटा ही मिल जाये तो, जियो जिंदाबाद। अन्य टेलकॉम कंपनी राहत भी तो नहीं दे रहा है। कॉल दरें घटाते है तो नेट पैक में जान निकाल देते है। एसएमएस पैक तो त्योहारों में काम नहीं आते है ऐसे में क्या फायदा। तो क्यो न मोबाइल और सिम बदलकर डिजिटल हो जाये 4G के साथ। 
फ्री की वैधता समाप्त होने के बाद कल जो होगा देखा जायेगा, आज तो फोकट का मिल रहा है। जियो में फायदा देखकर भी जिनको नहीं लेना है वो लाख तर्क देते है, इंटरनेट के सर्च बढ़ाने के नुस्खे, ब्लॉग अथवा वेब के ट्राफिक बढ़ाने का फंडा। यूट्यूब वाले भी ऐसे ही बंडलमार विडियों अपलोड कर फोकट का टाइम कोटा कर रहे है, लाइक करो, कमेंट करो, सबस्क्राइब करो, फिडबैक दो वगैरह-वगैरह। फ्री की वैधता समाप्त होने के बाद सिम ही बदल देंगे और क्या। यहा मेरे और तुम्हारे चकल्लस से कुछ नहीं होने वाला जो भी करेगा रिलायंस कंपनी ही करेंगा। तब तक फड़फड़ाने दो 2G और 3G हैडसेट को।


नोकिया 1100 का
अलग था जमाना
जी भर बातें, 
न बैटरी थके न लाइन कटे।
आया एन 70
नेट के साथ,
गुरूर से लबरेज
कैमरा, विडियों, छैल छबीले।
फिर सेमसंग
एंड्रायड एप 
3 जी का मजा
बटन झंझट नहीं, ऊंगली में नाचे।
अब माइक्रोमेक्स 
ग्रेड पे अपग्रेड
झटपझ अपलोड
4 जी, डिजिटल-डिजिटल रटे।

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खूंखार मानवों से मासूम जानवरों का सामना कराता जंगल सफारी नया रायपुर

प्रकृति प्रेमी सैर-सपाटे के लिए ऐसी जगहों में जाना ज्यादा पंसद करते है जहां मन आनंद से भर जाए और तन में नई ताजगी आए बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के। परिवार के साथ बाहर घुमना हर कोई चाहता है किन्तु घर को छोड़कर लम्बी दूरी की यात्रा सभी नहीं कर पाते है। ऐसे में अगर आसपास ही कोई सैर-सपाटे लायक अच्छा माहौल मिल जाये तो लोग बिन-बिचारे घुम आते है। शायद इसीलिए हाल ही में अस्तित्व में आया नया रायपुर का जंगल सफारी पर्यटकों से गुलजार होता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ के वन विभाग द्वारा लगभग 12 सौ एकड़ में तैयार जंगल में हिरण, शेर, बाघ, भालू, मगरमच्छ, नीलगाय, बारहसिंगा आदि जानवरों के साथ अनेक प्रजाति की तितली, पक्षियां आदि स्वछंद विचरते दिखेंगे। 
राजधानी के नया रायपुर क्षेत्र में विकसित हो रहे जंगल सफारी एवं बॉटनिकल गार्डन को प्रदेश सरकार रायपुर के सबसे बड़े मनोरंजन एवं शिक्षण केंद्र के रूप में तैयार कर रहा है। जिसमें 800 सौ एकड़ के जंगल सफारी को पूर्ण कर आम जनता के लिए सशुल्क 1 नवंबर 2016 से खोल दिया गया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आतिथ्य में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 2016 के शुभारंभ पर शानदार तरीके से लोकार्पण होने के उपरांत देश-विदेश के पर्यटक जंगल सफारी को देखने के लिए उत्सुक हैं। यह नंदन वन जंगल सफारी रायपुर रेलवे स्टेशन से 35 किमी, रायपुर बस स्टैंड से 30 किमी और स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
किन्तु वर्तमान में जंगल सफारी जितना सुनने में काबिल-ए-तारीफ लगता है उतना ही देखने के बाद नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। विभाग के ब्रोसर और घोषणा में जिन-जिन बातों का उल्लेख किया गया है उस पर हकीकत कुछ और कहता है। शहर के बीचो-बीच बना जंगल ग्रामीणों की कृषि भूमि, निस्तारी तालाब, सिचाई के लिए बने जलाशय, चारागाह, गांव की पगडंडी आदि की भूमि में विकसित किया गया है। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि खंडवा, पचेड़ा, मुड़पार भेलवाडीह आदि गांवों के किसानों के कृषि लायक जमीन को पांच लाख रूपए प्रति एकड़ मुआवजा देखकर खाली कराया गया है। एक तरफ तो वन विभाग जंगल बचाने के लिए वर्षों से काबिज ग्रामीणों को वन भूमि से खदेड़ कर अन्यत्र व्यवस्थापित कर रहा है वही दूसरी ओर शहर में मनोरंजन का केंद्र स्थापित करने के लिए लोगों को गांव से खदेड़ने को आतुर है। ग्रामीणों के विरोध और निवेदन पर कुछ युवाओं को गाइड, वाहन चालक और सिक्युरिटी गॉड के रूप में रोजगार मुहैया जरूर कराया गया है किन्तु वह भी अस्थाई तौर पर। उस सरकार यह तर्क दे रही है कि गांव वालों के लिए रोजगार के नये-नये रास्ते खुलेंगे। कृषि भूमि से बेदखल किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या मुॅह खोल रही है। ग्रामीणों की समस्या को दरकिनार कर सरकार का ये कहना कि जंगल सफारी को वाशिंगटन और न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क के तर्क पर तैयार किया जायेगा एक तमाचा जैसे लगता है। कानून और संविधान के लिये अपवाद हो गये है नई राजधानी क्षेत्र के मूल निवासी और एनआरडीए। आश्चर्य होता है उनके साथ हो रहे सौतेले व्यवहार को देखकर। यह पहली परियोजना नहीं है जिसमें किसानों की कृषि भूमि की बलि दी गई बल्कि पूरी नई राजधानी का यही किस्सा है। परियोजना जितनी बड़ी होती है वह उतनी ही बड़ी जमीन मांगती है। नई राजधानी की तमाम बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास से लेकर लोकार्पण तक केंद्रीय स्तर के बड़े-बड़े नेता पहुंचे, सभी ने तेजी से बदलते रायपुर को देखा किन्तु बदलाव के भेट चड़कर आंसु बहाते किसान और सिसकती उपजाऊ माटी को किसी ने नहीं देखा। जिस जंगल सफारी को पूरी दुनिया ने मोदी जी के कैमरे से देखा है वें हकीकत से भी वाकिफ हो कि इसे गांव और शहर के बीच में बसाया गया है। और शहर में जंगल कैसे, किन परिस्थितियों में बस सकता इसकी कल्पना कीजिए। 
जंगल सफारी की परिकल्पनाकर्ताओं ने भले ही रायपुर में विश्वस्तरीय मनोरंजन को जनहित से जोड़कर अपने सीने में एक और तमगा जड़ा लिये है किन्तु वह अब भी आधा अधूरा है। हाइटेक टिकटघर से टिकट लेकर जंगल सफारी पहुंचते ही भव्य प्रवेशद्वार, मिनी उद्यान, बैट्री चलित टैक्सी। जंगल भ्रमण के लिए वातानुकूलित तथा गैर वातानुकूलित सुरक्षित यात्री बस। अप्रशिक्षित गाइड के पोस्ट पर काम करते प्रभावित गांव के किसान का बेटा टाइगर सफारी, बियर सफारी, हर्बीवोर, लायन सफारी से लेकर खंडवा जलाशय दिखाता है। गांव का गाइड भोलेपन में कई ऐसी भी बातें कह देता है जो उनकी नौकरी के लिए खतरा है, वह भी बेचारा क्या करे आखिर है तो अप्रशिक्षित। उस गाइड की मासूमियत देखिये जो कहता है-'ये देखिये सर जंगल सफारी का मासूम जंगली जानवर जो नंदनवन से लाया गया है। जगह-जगह इनके पानी पीने के लिये तालाब बनाये गये है जो पहले कभी हराभरा खेत-खलिहान हुआ करता था।' आगे कहता है 'इस बांध को देखिये सर ये नेस्टिंग आइलैण्ड, जो पहले था तो हमारे गांव का किन्तु अब हमें यहा नहाने-धोने तो दूर घुसने तक नहीं दिया जाता है।' जंगल सफारी देखते पर्यटकों का मन भरता हो ऐसा भी नहीं है। पिंजरे में कैद खूंखार जानवरों सा बंद बस में बैठेे यात्री असंतुष्ट मन से 45-55 मिनट भ्रमण करता है। यात्री से पूरे पैसे लेकर आधा-अधूरा दिखाने का ताना बेचारे स्थानीय ग्रामीण गाइड सुनते है। विभाग कार्य अवधी का हवाला देकर पल्ला झाड़ते है। जंगल सफारी के नाम पर सैलानियों के अलावा जू का जानवर भी ठगा महसूस करते है। सही मायने में कहा जाए तो घुम फिरकर नाम बड़े दर्शन छोटे वाली बात मुक जानवरों के चेहरों से भी झलकते है। कहने को जानवर आजाद है लेकिन उन्हे तो नंदनवन जितना भी सुकून नहीं है। असिमित, असमय प्रतिदिन पहुंच रहे पर्यटक अव्यवस्था के लिये खूंखार होकर मासूम जानवरों को कोसने लगते है। विभागीय अव्यवस्था और जल्दबाजी में कही ऐसा न हो की कुछ दिनों बाद वे किसी फ्लाप शो की तरह दर्शक को तरसे!

सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ का कतरन


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