संगम तट में लोक खेलों का अद्भुत मेला

यात्रा संस्मरण :

छत्तीसगढ़ की प्रयाग नगरी कही जाने वाली राजिम में सदियों से माघी पुन्नी से लेकर महाशिवरात्रि तक पाक्षिक विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में जहां-जहां महादेव का वास है वहां पूर्णिमा के पावन अवसर पर मेला लगता ही है किन्तु राजिम के त्रिवेणी संगम पर बसे कुलेश्वर महादेव के मेले का कई ऐतिहासिक और पौराणिक किवदंतियां होने के कारण विशेष महत्व है। विदित हो कि पिछले कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ शासन का धर्मस्व, संस्कृति और पर्यटन विभाग द्वारा विशेष रूचि लेने से यह मेला और भी भव्य हो गया है। 


प्रतिवर्ष राजिम में देव दर्शन के साथ ही विशाल संत समागम, शाही स्नान, मेला, मीना बाजार और मनोरंजक आयोजन में दर्शनार्थियों का रेला लगता है। किन्तु इस वर्ष का मेला नई सरकार जिसे छत्तीसगढ़िया सरकार भी कहा जाता है के बूते होने के कारण बहुत कुछ नवाचार के साथ आयोजित हुआ। संगम तट पर मेला घूमते लोगों को अपनी पारंपरिक लोक खेलों से रूबरू कराता हुआ एक विशाल मंडप का निर्माण कराया गया था। जिसमें धर्म की नगरी में संस्कृति और लोक परंपरा को सहेजता हुआ छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोक खेलों का आयोजन, प्रदर्शन और प्रतियोगिता तत्कालीन संस्कृति व पर्यटन मंत्री एवं विभाग के संचालक के दिशा निर्देश पर लोक खेल उन्नायक चंद्रशेखर चकोर जी के मार्गदर्शन में हो रहा था। 


पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद पहली बार इतने व्यापक स्तर पर गोंटा, पच्चीस गोटिया, बग्गा, बिल्लस, फुगड़ी, भोटकुल, तुवे लंगरची, अट्ठारह गोटिया, खो-खो, कबड्डी, भारत, बांटी, भौरा और गेड़ी जैसे छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकखेलों का आयोजन हो रहा था। यह आयोजन छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल और संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू जी के विशेष सानिध्य में सफलता पूर्वक आयोजित हुआ। कई बड़े आयोजनों में अकसर देखा गया है कि मुख्यमंत्री जी सहजता से बांटी, भौरा और गेड़ी में आत्मियता के साथ रम जाते है। जिस प्रदेश में ऐसे मुखिया हो वहां की लोक संस्कृति और परंपरा कभी विलुप्त नहीं हो सकती है। 


संगम तट यानी जहां राजिम मेला भरता है, में लगे पारंपरिक खेल के पंडाल में पहुंचते ही लोग अपने बचपन में लौट आते थे। पंडाल में आने वाले लोग पहले तो कौतूहल से देखते और मन ही मन आनंदित हो उठते। दूसरों को खेलते देखकर अपने आप को रोक नहीं पाते थे। क्या बच्चे, क्या युवा और क्या बुजुर्ग यहां तक की औरतें भी पंडाल में रूक कर छत्तीसगढ़ी खेल में रम जाते थे। यकीन माने तो खेलों के प्रति ये लगाव है जो दूर-दूर से पहुंचे लोग अंजाने साथी के साथ घंटों खेलों का लुप्त उठाते थे। मीलों दूर ले मेला देखने आए जनमानस राज्य सरकार के इस नवाचार का सराहना करते नहीं थकते थे।


इस आयोजन में दूर दराज के अलावा आसपास गांव के लोग भी पहुंचते थे, वे मजे से रोज अनेको खेल खेलते। कभी हार तो कभी जीत लेकिन खुशी दोनो में ही बराबर आता था। लोकखेल के आयोजन में कभी स्कूली बच्चों के साथ अध्यापकगण तो कभी बड़े अफसर के साथ छोटे कर्मचारी निःसंकोच खेलते थे। राजिम जैसे पौराणिक नगरी जहां जीवात्मा मोक्ष पाता हो वहां जब खेल से सुकून मिले तो लोग खिलाने वालों को भी साधूवाद देकर जाते थे। लोकखेलों को खिलाने वाले सिद्धहस्त खिलाड़ियों की टीम में प्रमुख रूप से लोक खेल उन्नायक चंद्रशेखर चकोर के साथ उनके सहयोगी शिव चंद्राकर, घनश्याम वर्मा, यतीश बंछोर, परमेश्वर कोसे, भेवसिंह दीवान, जितेन्द्र साहू, मिथलेश निषाद आदि लोकखेलों की प्रचलित नियमावली से अवगत कराते हुये खेल खिलाते थे। त्रिवेणी संगम से शुरू हुआ, लोक खेलों के उन्नयन का छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा आयोजित यह राज्य स्तरीय वृहद आयोजन का सिलसिला अविरल बहती रहे ऐसी हम सब की आपेक्षा है।

जयंत साहू, 
रायपुर, छत्तीसगढ़ - 9826753304

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