पर्यावरण नित्यम् संकल्प


"पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों की भावनाएं गजब की है .... वो गंदा करता है तो मैं क्यों न करू। जल, जंगल और जमीन के साथ खिलवाड़ करने वाला एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिये नुकसान दायक नहीं है अपितु वह समाज के लिये घातक है। पर्यावरण संरक्षण का कानून इतना प्रभावी और कारगर हो कि व्यक्ति, समाज और स्वयं प्रशासन भी जल, जंगल और जमीन को टेड़ी नजरों से न देख सके।" 
..... लो भई फिर आया है ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ यानी 5 जून का पावन बेला। गांव, शहर और महानगर जोर-शोर से आयोजन की तैयारी में लगा है, जगह-जगह मंडप सज रहा है। मौसम के अनुकूल अतिथियों के आदर-सत्कार के लिये कूलर, पंखे, फूलमाला, शुद्ध-शीतल पेय, ताजा-गरम नास्ता। हजारों नग हरा टोपी, स्लोगन लिखा हुआ टी शर्ट, छोटी-छोटी प्लास्टिक के थैलियों में नन्हे पौधे आदि। 
अजी... थोड़ा बहुत दिखावा और खर्चा तो करना ही पड़ेगा आखिर काम के साथ नाम भी बड़ा है.... ’विश्व पर्यावरण दिवस’। और अब आयोजन में पधारे नेताओं की बात करे तो आजकल के अतिथि केवल आदर-सत्कार के भूखे नहीं है, उन्हे खाना न दो तो भी चलेगा पर भाषण सुनने के लिये सौकड़ों से हजारों की भीड़ चाहिए।


हर साल की तरह.....। उच्चाधिकारियों का कनिष्ठों को सक्त निर्देश मिला है कि ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ अनिवार्य रूप से अपने-अपने स्तर में मनाये। पर्यावरण के प्रति आम लोगों को जागरूक करे। पर्यावरण को बचाये रखने का संकल्प दिलाये। पानी बचाव और साफ-सफाई के नारे लगवाए। ....वगैरह-वगैरह जनजागरूकता के काम करने है। चूकि इस आयोजन के लिये सरकारी फंड प्राप्त होता है तो किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं होनी चाहिये भले ही प्रस्तावित बजट से अधिक धन खर्च क्यो न करना पड़े। कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने में मेहनत करने की कतई आवश्कता नहीं पिछले वर्ष का नोटशीट देखों और दो गुणा बजट के साथ लूट लो वाहवाही। अखबारों की सुर्खियां बनो, आंकड़े देने में तनिक भी संकोच मत करो, कह दो कि इस वर्ष लगभग एक करोड़ पौधा लगाया जायेगा। 
कुछ लोगों का तो काम है उंगली करना वो कहेंगे कि-"पिछले कई सालों से इस तरह का आयोजन होता आ रहा है। पर नतीजा कुछ नहीं निकलता। आयोजन वाले ही कार्यक्रम स्थल में खाली पानी की बोतले, नास्ते का पैकेट, मंच का कचरा सड़क पर फेक भागते है। तपती धूप में मंच के नीचे आम जनता, स्कूली बच्चे और गांवों से बुलाये भीड़। हजारों लोग एक साथ पर्यावरण को बचाने के लिये संकल्प लिये। तीन मिलोमीटर तक मनाव श्रृंखला बनाई गई.....।" ऐसी बातों को विराधी खेमे का विचार करार देते हुये इस बात को भी नजर अंदाज करों कि पिछले वर्ष लगे पौधों की वर्तमान में क्या स्थिति है? जिंदा है भी कि उगे ही नहीं।
"अपना ध्येय सिर्फ यही रखों कि लागों को जगाने के लिये इस तरह के आयोजन करने पड़ते है बाद में कौन याद रखता है। जो कुछ भी करना है आज ही दिन कर डालो, फटाफट संकल्प ले डालो। एक साल बाद आया है 5 जून, ’विश्व पर्यावरण दिवस’।"


समझ में नहीं आता लोग ऐसा संकल्प क्यों ले लेते है जो पल भर में ही टूट जाता है। प्राण वायु को साक्षी मानकर वायु प्रदुषण न करने का संकल्प लेते है और मोटरसाइकल, कार आदि से हवा में जहर घोल देते है। दूसरी तरफ कारखानों से निकलने वाला काला धुआ जिंदगी को कम कर रहा है। अफसोस कि कई कारखाने तो महानगर के आबादी वाले क्षेत्र में ही चल रहे है। जीवनदायनी जल को साक्षी मानकर पानी को गंदा नहीं करने का संकल्प लेते है और घरों से निकलने वाली नाली की धार को नालों और तालाब की ओर मोड़ देते है। पेड़ को साक्षी मानकर संकल्प लेते है और अंधाधुंध जंगल की कटाई को मौन देखते है। ऐसे मामलों के लिये पर्यावरण मंत्रालय को और कठोरता से नियम बनाने की आवश्कता है। जल, जंगल और जमीन से जुड़े हरेक मामले में पर्यावरण मंत्रालय का दखल हो। मौजूदा कानून से भिन्न नये कानून बने और बाकायदा उसमें कठोर सजा का प्रावधान हो। जल, जंगल और जमीन के साथ खिलवाड़ करने वाला एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिये नुकसान दायक नहीं है अपितु वह समाज के लिये घातक है। पर्यावरण संरक्षण का कानून इतना प्रभावी और कारगर हो कि व्यक्ति, समाज और स्वयं प्रशासन भी जल, जंगल और जमीन को टेड़ी नजरों से न देख सके।
प्राकृतिक रूप से जो हमारे आसपास का वातावरण है वो अब बनावटी हो रहा है। आंगन में लगा बरगद का पेड़ अब गमले में आ सिमटा है। खुद के पाने का पानी मशीनों से शुद्ध करते है और जलिय जीवों को अपने घरों की गंदगी देते है। हमारा और आपका दम छोटे से कमरे में घुटने लगता है तो हम जंगल काटकर महल बनाने लग जाते है। ये सोचने की फुरसत तक नहीं हमारे पास की जंगल के कटाई के बाद वहां के जीव कहा जायेंगे? पेड़ कटा सो अलग। 
पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों की भावनाएं गजब की है ...... वो गंदा करता है तो मैं क्यों न करू। "वो और मैं" ही पर्यावरण का कबाड़ा कर रखा है। यदि हम वाकई पर्यावरण के प्रति चिंतित है तो हमें किसी दिन विशेष की प्रतिक्षा नहीं और न ही दिखावे का संकल्प। प्राकृतिक रूप से कुदरत ने जो हमें दिये है बस ज्यों का त्यों उसकी हिफाजत करें। जितना जरूरी उतना ही उपयोग इस शर्त के साथ की बदले में हम भी प्रकृति को वहीं लौटायेंगे।

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- जयंत साहू
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