बागबाहरा घुंचापाली के चण्डी मंदिर में भालुओं का डेरा


छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले का बागबाहरा तहसील चारों ओर से हरे-भरे वनों से आच्छादित हैं। यहां की सदाबाहार पेड़-पौधों का सौंदर्य, प्राण वायु की शुद्धता और निर्मल नीर की कलकल ध्वनी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा हैं। शहर की अंधाधुंद रफ्तार में हाफ चुके मनुष्य शांति की तलाश में किसी ऐसी जगह जाना चाहते है जहां किसी प्रकार का कोलाहल न हो और प्रकृति के इतने करीब हो कि सबको अपने हाथों से स्पर्श कर सकें। खेत-खलिहान, नदी-नाले, पर्वत की चोटी, पत्थरों से ठकराते पानी की छिंटे, झरनों का मधुर संगीत और स्वछंद विचरते जंगली जानवरों को देखने के लिए लोग अब महासमुंद के छोटे से तहसील बागबाहरा पहुंच रहे हैं। यह स्थान छोटी ही सही किन्तु सुकून देने में स्वर्ग सा है। राजधानी रायपुर से पूर्व दिशा की ओर लगभग 95 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है चण्डी मंदिर। रायपुर पहुंचने के लिये अतर्राष्ट्रीय हवाई मार्ग, रेल मार्ग, सड़क मार्ग का उपयोग किया जा सकता है। रायपुर से बागबाहरा के लिये रेल्वे लाइन भी है किन्तु बस अथवा टेक्सी का उपयोग करना ज्यादा उचित होगा। 





बागबाहरा की छोटी सी घुंचापाली पहाड़ी पर माता चण्डी का भव्य मंदिर बना हुआ है। यह पहाड़ी न ही दुर्गम है और न ही माता की मंदिर तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीड़ियां चढ़ना की आवश्यकता है। सहज एवं सुगमता से माता के दरबार तक भक्त आसानी से पहुंच सकते है। धरातल से ही लगभग सौ मीटर की ऊंचाई पर माता जी की स्वयंभू विशाल प्रतिमा का दर्शन होता है। माता जी की प्रतिमा दिनों-दिन बड़ती जा रही है शायद इसीलिए मंदिर के गुंबज को पूरा नहीं किया गया है। लोग यहा  पर माता से मन्नत मांगने आते है और पूरा होने पर माता को चढ़ावा अर्पित करते है। मंदिर समिति द्वारा एक सूचना बोर्ड लगाया गया है कि यहां पर पशु बलि निषेध है। बावजूद इसके लोग अकसर बकरा-भेड़ा लेकर पहाड़ी पर पहुंचते है। चैत्र और क्वांर की नवरात्रि को अखंड ज्योति जलाने और माता चण्डी के दर्शन करने के लिये दूर-दूर से लाखों भक्त पहुंचते है। आस्था और भक्ति के साथ अन्य अवसरों पर भी अब अन्य राज्यों से भी पर्यटक पहुंचने लगे इन वादियों में भ्रमण करने के लिये।
घुंचापाली की सबसे खास बात है यहां का भालू माढ़ा। हम लोग भी छुट्टी मानने निकल पड़े सड़क मार्ग से भालू माढ़ा के लिये। कान्हा किसली, कानन पेंडारी और जैसे बारनवापारा अभ्यारणय से हम जंगली जानवर देखने की अधुरी चाहत लेकर लौटे थे इसलिए चण्डी मंदिर में भालू हमें आसानी से दिख जायेगा ऐसे सोचे नहीं थे। सड़क मार्ग से सीधे हम मंदिर पहुंचे और माती चण्डी के दर्शन किये। दोपहर के दो बजे थे, भालू के इंतजार करने का हमारे पास समय नहीं था। किन्तु माता रानी की कृपा ही मानों कि हमने माता से भालुओं के दर्शन की बिनती की और मंदिर के पीछे से चार भालू निकल कर मंदिर परिसर में आ गये।  माता चण्डी के मंदिर में प्रतिदिन भालुओं का एक परिवार विचरते हुये मंदिर परिसर में आते है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार पहाड़ी से भालुओं का झुंड माता जी की आरती में शामिल होने के लिये आते है और प्रसाद लेने के उपरांत ही वापस पहाड़ी में जाते है। वैसे तो ये भालू संध्या आरती में शामिल होते है ऐसा कहना था स्थानीय लोगों का किन्तु हमें दोपहर दो बजे ही मंदिर में भालुओं का एक परिवार दिखा। भालुओं के मंदिर में प्रवेश करते ही माता के दर्शन करने पहुंचे भक्त भालुओं के साथ फोटो खिचाने के लिये दौड़ पड़े। वहा पर फोटोग्राफरों का भी अच्छा खासा दुकान चल रहा है। वे भालुओं को नाम से पुकारते और ग्राहकों के हाथों में प्रसाद देकर भालू को खिलाते हुये उनकी तस्वीर उतारते है।

लोग बिना किसी भय के भालू के करीब से और करीब जाकर उन्हे हाथों से स्पर्श करते है। प्रसाद तो ऐसे खिलाते मानों वे किसी मदारी के बंदरिया हो। खुंखार जंगली भालुओं को खुले में घुमते हमने पहली बार देखा इसलिए काफी डरे हुये थे किन्तु वहां कुछ ऐसे जिगर वाले व्यक्ति भी थे जो अपने छोटे-छोटे बच्चों की भालुओं के साथ तस्वीर उतार रहे थे। उन भालुओं को देखने पर ऐसा लग रहा था मानो वे पालतु हो। स्थानीय लोग बताते है कि वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है। जब कोई उन्हे ज्यादा परेशान करता है, तो उग्र होकर हमला भी कर देते है और तब तक शांत नहीं होते जब तक की मंदिर परिसर के कोई व्यक्ति उन्हे न रोके। ये भालू मंदिर परिसर में हमेशा रहने वाले माता जी चरण के सेवकों, पुजारियों, दुकानदारों के अलावा फोटो ग्राफरों को अच्छी तरह से पहचानते है। वे एक दूसरे के इशारों को भी समझते है।

दूसरों पर्यटकों को देखकर हमने भी थोड़ा साहस दिखाया और एक बड़े से भालू को लायचीदाने खाने को दिये। हथेली को जीभ ले चाट कर एक-एक दाना खाने के बाद भालू दूसरे के हथेली को ताकने लगे। शायद अब ये सब उनकी आदतों में शामिल हो चुका है। कुछ देर बाद पुजारी जी ने तीन नारियल तोड़कर भालुओं को दिये और पानी की एक टंकी की ओर इशारा किये। तीन  भालू पानी पीने टंकी के पास चले गये और एक बड़ा सा मादा भालू नारियल को दांतों से खुरच कर खाने लगी। इस तरह लगभग तीन घंटे का अद्भुत क्षण माता चण्डी के दरबार में बीता भालुओं के साथ। दो व्यस्क भालुओं के साथ दो शावक मंदिर परिसर में मनुष्यों के बीच सहजता से खेल रहे थे। लोग उन्हे प्रसाद खिलाने के बहाने कैमरे में तस्वीर उतरवा रहे थे। छत्तीसगढ़ के आस-पास कई बड़े-बड़े जू और कानन जहां लोग खुले में जंगली जानवरों को देखने के लिये समय और धन दोनो गवांते है किन्तु हमें बागबाहरा के घुंचापाली स्थित पहाड़ी में माता रानी की कृपा से भालुओं को देखने का अवसर मिला। पहाड़ी पर माता चण्डी की असीम कृपा बरसती है तभी तो इंसानों के साथ जानवर भी मॉं की आरती में शामिल होकर प्रसाद पाते है।



घुंचापाली बागबाहरा के माता चण्डी की मंदिर की ख्याती अब धीरे-धीरे देश-विदेश तक फैल रही है। मनोरम वादियों के बीच भक्तिमय वातावरण में हजारों लोग समय बिताने की चाहत लेकर प्रतिदिन आते है। मंदिर के आस-पास कोई रहने की उचित व्यवस्था नहीं है शायद इसीलिये यह स्थान साफ-सुथरी है। कहीं भी बैठ कर भोजन व आराम कर सकते है पहाड़ियों पर, भालुओं से भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं क्योकि भालू तो स्वयं माता के सबसे बड़े भक्त है। यह स्थान छोटी ही सही किन्तु यहां सैर-सपाटा के सारे साधन उपलब्ध है। यदि आप फोटोग्राफी करना चाहते है तो लोकेशन तलास करने की जरूर नहीं, कही भी खड़े होकर तस्वीर उतारा जा सकता है। घुंचापाली बागबाहरा का लोकेशन देखकर ऐसा लगता है मानो इसे आउॅटडोर फोटोग्राफी के लिये विकसित किया गया हो। हम सभी ने लगभग पांच बजे तक जी भर कर फोटोग्राफी किये तद्उपरांत घर के लिये निकल पड़े। रास्ते भर आंखों में बागबाहरा का मनोरम दृश्य कैद होता रहा है लेकिन मन भालुओं के विषय में विमर्श करने में व्यस्त रहा। 
-जयंत साहू
ग्राम-डूण्डा वार्ड-52, पोस्ट-सेजबहार
 जिला रायपुर छ.ग. पिन- 492015




ब्लॉग से साप्ताहिक "इतवारी अखबार" में प्रकाशित लेख का PDF फाईल्—


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