बेबाक बोल से बवाल


देश में संचार क्रांति का आलम इस कदर छाया हुआ है कि प्रत्येक व्यक्ति अथवा समुह आपसी बयानों को भी स्वतंत्र रूप से सोशल मीडिया में परोस रहे है। मन की बात अर्थात व्यक्तिगत विचार भी अब दूसरों तक आसानी से पहुंच रहा है। बात चाहे देश की हो, समाज की या किसी वर्ग विशेष की, आम तो पहले भी होता रहा है किन्तु अभी जिस तरह से सोशल मीडिया में बेबाकी से बात को रखा जा रहा है वह आग में घी का काम कर रहा है। देश की धार्मिक सद्भावना और आंतरिक सुरक्षा को तार-तार करते धारदार जुबान से समाज का युवा वर्ग दिशाहिन हो रहा है। हर कोई भटकाव और भड़काऊ टीका-टिप्पणी करने में लगे हैं। 
बहस और विवादों में रहना युवाओं का फैशन होता जा रहा है। किसी ने कुछ कह दिया जो तो बिना विचारे ही उस पर विवाद खड़ा करना लोग जरूरी समझने लगे है, वर्ना शायद उनको लोग सामाजिक व्यक्ति नहीं समझेंगे। अब तो समाज में रहना है तो सामाजिक बातों से खुद को जोड़े रखना युवा अपनी जिम्मेदारी समझने लगे है। बात उनकी मतलब की नहीं है तो भी बोलेंगे, बोलने की आजादी जो मिली है। बिना किसी मर्यादा के लोग अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देकर बेबुनियाद दलील देने से नहीं चुकते है। 
वाट्सअप, फेसबुक ट्वीटर आदि जैसे सोशल मीडिया में लोग रोजाना नया-नया प्रपंच रच कर न जाने क्या दिखाने की कोशश कर रहे है वे खुद नहीं जानते है। कभी-कभी तो लगता है कि लोग सुर्खियों में रहने के लिए ऐसा करते है। कोई कहता है ''आजादी-आजादी, लेके रहेंगें आजादी'' अब इस बात पर महीनों तक बहस चली और अब भी जारी है। अब ''मैं भारत माता की जय नहीं बोलुंगा" कथन पर बयानबाजी का दौर चल रहा है। इस विषय पर टिप्पणी करने वालों को रोकना या उनकी टिप्पणी पर कुछ कहना भी उक्त कथन कहने वालों का पक्षधर हो जायेगा शायद। इतना ही नहीं उस विषय पर आलेख लिखने वाले स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों पर भी उंगली उठ जायेगी। किसी का नाम लेकर टिप्पणी करना अब लेखकों पर ही भारी पड़ रहा है। बात-बात पर बात इतना आगे बढ़ जा रहा है कि लोग लेखकों के दफ्तरों और कॉलर तक पहुंच जा रहे है।
देश के माननीय नेता जी हमेशा कहते है कि- ये देश युवाओं का है, नव जवान साथी हमारे देश की ताकत है। लगता है युवा वर्ग पर उनकी बातों का खासा असर हुआ है वे अब स्वयं को देश की आन-बान-शान समझने लगे है। उनमें जोश और जस्बा यूं ही बरकरार रहे तो वाकई भारत को शक्तिशाली देश बनने से कोई नहीं रोक सकता है। बशर्ते युवा अपनी उर्जा को बेबाकी में बेकार न करे बल्कि साकारात्मक दिशा में लगाये तो देश के लिए बेहतर होगा। लोगों में खास कर युवा वर्ग में देश के लिए कुछ करने के जुनून को सही दिशा देने की जरूरत है। उनकी उर्जा को देश के विकास में किस तरह भागीदार बनाये जाये इस बात पर बुद्धजीवियों को राय
देनी चाहिए। किसी ने कहा कि ये देश युवाओं का है तो किस संबंध में उन्होने उक्त बातें कही इस विषय पर मंथन करे। ये देश हमारा है इस बात का कुछ और ही मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को ही सर्वोपरि भी ना समझे। सभी को अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए। खास कर तब जब कोई व्यक्ति अथवा समुह धर्म और संप्रदाय विशेष की बात करता है, या किसी के निजी आचरण को देश और धर्म से जोड़कर देखा जाता है। जब आपसी बहस का दौर शुरू होता है उस वक्त समझौता और बीच का रास्ता निकालने अथवा उक्त विषय पर स्वतंत्र विचार रखने वालों पर भी पक्ष और विपक्ष का ठप्पा लग जाता है केवल इस आधार पर कि लेखक या विचारक किस संप्रदाय से तालुक रखता है। आलेख भले ही किसी के पक्ष में न हो फिर भी लेखक की जाति, लेख का आधार हो जाता है। कुछ ही असंप्रदायिक लेखक, कलाकार, साहित्यकार, राजनेता इन विषयों पर बेबाकी करते है जो उनका निजी विचार होता है और बेबाक बोल पर बवाल को अपना अधिकार समझना अनुचित है। देश को धर्मों और संप्रदाय में बांटकर आंतरिक कलह का कारण न बने तो बेहतर होगा। 

- जयंत साहू
डूण्डा, रायपुर छ.ग.
JAYANT SAHU
RAIPUR CHHATTISGARH
9826753304

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