रावण मरता नहीं वरन अभिनय करता है

Rawan

इस साल भी रावण ही मारा गया ये कहने की जरूरत नहीं है। क्यों मरता है कैसे मरता है, इस पर भी चर्चा नहीं करनी है ये सब बोरिंग सब्जेक्ट हो गया, बचपन से जो सुनते आ रहे है। अब धार्मिक उत्सव है तो देखना भी पड़ेगा। अगर नहीं देखे तो नास्तिकों के श्रेणी में आ जायेंगे। तो भई अब आ गये परिवार सहित दशहरा मैदान में रावण दहन देखने। वहां विशाल शरीर वाला भारी-भरकम रावण महाराज जी सीना तान के खड़े थे श्री रामचंद्र जी की प्रतिक्षा में। अब ये तो उनको भी पता है कि एक घंटा वो मारने का अभिनय करेंगे और हमें मरने का अभिनय करना है। सचमुच का थोड़े ही मरना है।

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अगर सचमुच दशहरा मैदान का रावण पुतला खतम हो गया तो फिर पुतले के पीछे छिपकर सुट्टा मारने वाले बेचारे गंजेड़ी, भंगेड़ी, नशेड़ी, जुऑड़ी भला कहां जायेंगे। अच्छाई पर बुराई की जीत का पर्व विजयादशमी ये जुमला देश के हर नागरिक को पता है। पर शायद किसी को ये नहीं पता है कि जिस दशहरा मैदान के रावण को लोग मरते हुये देखने आये है उसने क्या-क्या देखा है।
चार गज जमीन के लिये भाई से भाई को लड़ते देखा है। दहेज के लिये बहु को जिंदा जलाते सास-ससुर और पति को देखा है। चोरी के झुठे आरोप लगाकर गरीब नौकर को बिना पगार मजदूरी करते देखा है। फूलों सी मुस्काती बेटी को दरिंदो द्वारा नोचते देखा है। अरे और क्या बताये भाई साब, हम राक्षस राज रावण है फिर भी हमें आज के अत्यचारों को देखकर घृणा होने लगती है। ना कोई मर्यादा है न उसूल। ऐसी-ऐसी अशोभनिय घटनायें देश भर में रोज घटित हो रहा है की पुछो ही मत। किन्तु तो मेरे आंखों के सामने जो होता है यानी वही रावण पुलते के पीछे, उसे सुनकर तो पैरों के नीचे से जमीन फिसल जायेगी।
सेठ-साहूकारों के बिगड़ेेलों के साथ किसान-मजदूरों के बच्चे पुतले के पीछे बैठकर सट्टा-पट्टी, जुआं, सिगरेट और शराबखोरी करते है। स्कूली बच्चे पढ़ने जाने बजाए वही अपना अड्डा जमाते है। बच्चे उम्र में छोटे लेकिन नशे का शौक तो बड़े-बड़ों से आगे। नशीली गोलियां, इंजेक्शन, सिलोसन, बोनफिक्स, गांजा और न जाने क्या-क्या, छीं-छीं।
आज दशहरा के दिन देखों तो दुकानों में और भी ज्यादा नशे के समानों की बिक्री हो रही है। मुझे दोष मत देना भई मैं तो अभी श्री रामचंद्र जी के हाथों मरने वाला हूं। तुम्हारी दुनियां तुम जानों, हमारी राम कहानी तो कब का खल्ला हो चुका है। तुम लोग धरती पे श्री रामचंद्र जी का लीला करते हो तो मुझे भी रावण का अभिनय करने आना पड़ता है। दशहरा के बाद अगर दशहरा मैदान और मेरे पुतले पीछे जो कुछ भी होता है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं होता।
लो भई किसी का कोई दोष ही नहीं तो हम भी किस्सा खत्म किये देते है। किन्तु नशेड़ियों का किस्सा कौन खत्म करेगा। हमारे यहां अभी त्योहारों का लाईन लगा है। एक गया नहीं की दूसरा आ गया। लगता है ये सब चलता ही रहेगा सनातन। चलो खुशी-खुशी घर चलें आज का रावण तो खाक हो गया। 0
जयंत साहू
डूण्डा वार्ड-52, रायपुर
jayantsahu9@gmail.com

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